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________________ No. III SANGHA BHANDARA 319 नवजलहरगहिरसरे धम्मुवएसंति च दितए जम्मि । जिणभवणाओ बहिम्मि वि ट्ठिओ जणो सुणइ फुडसह ॥ ३६ ॥ वक्खाणलद्धिजुत्ते जम्मि कुणंतम्मि सत्थवक्खाणं । पाएण जडमईण वि जणाण बोहो समुप्पन्नो ॥ ३७ ॥ उवमियभवप्पवंचा वेरग्गकरी कहा कप्पा । आसि वक्खाणयसिद्धेणं जा पुव्वं सा कठोर त्ति ॥ ३८ ॥ वक्खाणिया सहाए पापण न केणई चिरं कालं । जस्स मुहनिग्गयत्था मुद्धाण वि सा तह कहं चि ॥ ३९ ॥ जाया हिययगयत्था अत्भत्थेऊण तेहिं जह एसा । उवरुवरि तिन्नि वरिसे नियमुया तस्सेव य मुहाउ ॥ ४० ॥ तदिणपभिइ पयारो जाओ पाएण तीए सव्वत्थ । जे तेण सयं रइया गंथा ते संपइ कहेमि ।। ४१ ॥ सुत्तमुवएसमाला-भवभावणपगरणाण काऊण । गंथसहस्सा चउदस तेरस वित्ती कया जेण ॥ ४२ ॥ अणुओगदाराणं जीवसमासस्म तह य सयगस्स । जेण च्छ सत्त चउरो गंथसहस्सा कया वित्ती ॥ ४३ ॥ मलावस्सयवित्तीए उवरि रइयं च टिप्पणं जेण । पंचसहस्सपमाणं विसमट्ठाणावबोधयरं ॥ ४४ ॥ जेण विसेसावस्सयसुत्तम्मुवरि सवित्थरा वित्ती। रइया परिप्फुडत्था अडवीससहस्सपरिमाणा ॥ ४५ ॥ वक्खाणगुणपसिद्धिं सोऊणं जस्स गुजरनरिंदो । जयसिंहदेवनामो कयगुणिजणमणचमकारो ॥ ४६॥ आगंतूण जिणमंदिरम्मि सयमेव मुणइ धम्मकहं । जस्सुवउत्तचित्तो सुइरं परिवारसंजुत्तो ॥ ४७ ॥ कइया वि जस्स दंसणउत्कंठियमाणसो सयं चेव । आगच्छइ वसहीए चिरकालं कुणइ संलावं ॥ ४८॥ अन्नम्मि दिणे अभत्थिऊण नेउं नियम्मि धवलहरे । सम्मुहमुट्ठिऊणं जयसिंहनिवेण जस्स सयं ॥ ४९ ॥ उद्धट्टियस्स उल्लसियबहलपुलए कंचणमएण । विउलेण भायणेणं दुबा-फल-कुसुम-जलमइओ ॥ ५० ॥
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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