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________________ 318 PATTAN CATALOGUE OF Manuscripts नीसेसो निवनयरस्स निग्गओ जस्स देसणनिमित्तं । भत्तीए कोउगेण य मग्गेसु अलद्धसंचारो ॥ २१ ॥ सबए(प)मयाउलेहिं सव्याओजेहिं बंदिहिं । सव्वेहिं वियंभियसद्दबहिरिए अंबराभोए ॥ २२ ॥ पायारपच्छिमट्टालए ठिओ परियणेण सह राया। जयसिंहो पेक्खंतो जस्सिडिं नीहरंतस्स ॥ २३ ॥ तं अच्छरियं दटुं नरिंदपुरिसा परोप्परं बैंति । मरणमणिहँ पि हु इटुं मन्नइ एइविभूईए ॥ २४ ॥ रविउदयाउ आरब्भ निग्गयं तं विमाणमवरन्हे । पत्तं सकारपए समणुपयं लोयकयपूयं ॥ २५ ॥ पूइजते मिउपटुंसुयपमुहपवरवत्थाणं । मिलियाई कोडियाणं तया सयाइं अणेगाइं ॥ २६ ॥ सिरिखंडविमाणेणं तेणेव समं सरीरसक्कारो । जस्स कओ लोएणं तह उवरि पुणो वि खित्ताई ॥ २७ ॥ कडा(ट्ठा)इं अगर-सिरिखंडसंतियाई घणो घणसारो। निव्वाणाए चियाए जणेण गहिया उ तओ रक्खा ॥ २८ ॥ रक्खाए वि अभावे गहिया तहाणमट्टिया तत्तो । ता जाव तत्थ जाया अनुमाणा वियडखड्डा ॥ २९ ॥ तीसे रक्खाए मट्टियाए अणुभावओ सिरोबाहा । वेलाजर-एगंतरजराइरोगा पणस्संते ॥ ३० ॥ भत्तिवसेणं न मए मणं पि इह भासियं मुसा किं पि । जं पञ्चक्खं दिळं तस्स वि लेसो इमो भणिओ ॥ ३१ ॥ नियतेयविसेसेणं पुरिसोतिमहिययरंजणो जाओ। कोत्थुहमणि व्व तत्तो सूरी सिरिहेमचंदो त्ति ॥ ३२ ॥ जगु(जुग)वट्टमाणपवयणपारगओ वयणसत्तिसंपन्नो। नियनामेव भगवई जीहग्गगया कया जेण ॥ ३३ ॥ मूलगंथि-विसेसावस्सय-लक्खण-पमाणपमुहाण । सेसाण वि गंथाणं पढियं जेण द्धलक्खं च ॥ ३४ ॥ रायामश्चाईण वि महिडियाणं जणाण आएजे । जिणसासणप्पभावणपरायणो परमकारुणिओ ॥ ३५ ॥
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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