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________________ No III. SANGI BAANDĀRA 815 असरिसगुणाण राएण परवसीहूयमाणसो तह वि । तेसिं गुणमाहप्पं मणं पि कित्तेमि सत्तीए ॥ ७६ ॥ गरुयगुणे अणुसरणं कुणमाणे पासिऊण व पवनं । तुंगत्तणं सरीरेण जस्स अच्चब्भुयं भुवणे ॥ ७७ ।। रूवेण निजिउ ठव मयरद्धओ महासुभडो । नियडो न कयाइ वि जस्स संठिओ विट्ठिमविमुक्को ॥ ७८ ॥ निव्वाणत्थगिरिसिरतिरोहिए दिणयरम्मि व जिणिंदे । पुव्वमुणि-मयंकमहे लोगंतरपट्टिए संते ॥ ७९ ॥ कलिकाल-निसापसरियपमाय-बलंधयारपडलेण । संजममग्गे पच्छाइयम्मि पाएण इह भरहे ॥ ८० ॥ जेण तव-नियम-संजमसमुज्जएणं महानिरीहेण । विष्फुरियं विमलमणिप्पइवकप्पेण...[पहु]त्तो ॥ ८१ ॥ तह कह वि अणुट्ठाणं मुककसायं अणुट्टियं जेण । परपक्ख-सपक्खेसु वि मणं पि जह होइ न विरोहो ॥ ८२ ॥ एगो य चोलपट्टो तह पच्छायणपडी वि एक्का । नियपरिभोगे जस्सासि सव्वया अइनिरीहस्स ॥ ८३ ॥ देहे वत्थे सुयसा वि जस्स मलनिवहमुव्वहंतस्स । अभितरफम्म-मलो स भयभीउ व्व नीहरइ ॥ ८४ ॥ घयविगई मोत्तूण पञ्चक्खायाओ सेस विगईओ। सव्वाओ जेण जावजीवं रसगिद्धिरहिएणं ॥ ८५ ॥ निज्झरणकए कम्माण जेण दिणतइयजामसमयम्मि । गिम्हे भिक्खा भमिया पढमगुणहाणियगिहेसु ।। ८६ ।। भिक्खाविणिग्गयं जं सोऊणं सावया निय-नियनिएएसु । होंति गिहेसुवउत्ता भिक्खादाणाहिलासेण ॥ ८७ ॥ जं नियगिहम्मि पयडागयमत्ता छउभदिट्ठिया वि नरा। आमणसेहिपमुहा पडिलाभंति य सहत्थेण ॥ ८८ ॥ गामे वा नगरे वा सो कत्थइ जत्थ संठिओ जाव । ताव तमवंदिऊण न तत्थ पाए जणो भुत्तो ।। ८९ ॥ सिरिवीरएवतणओ ठकुरसिरिजजउ सिरि जयपसिद्धो । गाउयपंचम(य)मज्झे अवंदिउं जं न भुंजतो ॥ ९० ॥ . .
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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