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No. II KHETARWASI
(४६) मुनिसुव्रतस्वामिस्तोत्र by जिनप्रभ. प. २३२-२३४
Beginning:—
जयसिरिस मलंकि ! गयकमलंकियपाय ! पवित्तिय महिवलय ! |
मुणि सुवयसामिय ! सिवपुरगामिय ! वीस मजिण ! जय गुणनिलय ! ॥ १ ॥
End:
इय सुव्वयणाहह नाणसणाहह जिणपहुसूरिहिं संथविय । पंचवि कल्लाई सुक्खनिहाण कल्लाणगु देयउ भविय ॥ १३ ॥ इति श्रीमुनिसुव्रतस्वामिस्तोत्रं जन्माभिषेकं च भासरागेण ॥ ५ ॥ (४७) जिनजन्माभिषेक by जिनप्रभ. प. २३४-२३६ Beginning:
सुर-नर- खयरिंदा दियर - चंदा पइदिणु पणमई पाय जसु । सिरिजिणवर यह वियलियरा यह गुण - गण - लघु कित्ते म त ॥ १ ॥
End:
एवं सिरिजिण पहु पणि कुप्पहु तिहुयणगुरु जे संथुणई ।
भत्तिर्हि रोमंचिय बहुभवसंचियकम्मक्खड ते लहु कुणई ॥ १५ ॥ ॥ ६ ॥ छप्पन्न दिसाकुमारीजन्माभिषेक ॥ ६ ॥
(४८) जिनजन्ममहोत्सवस्तवन by जिनप्रभ. प. २३६-२३९ Beginning:--
नमिवि सिरपासनाहस्स पयपंकथं हरियदुरिउलि कलिकलु समलु पंकयं । मिलिवि छष्पन्नदिसिकुमरि जिणजम्मणे जेंव विरयं सुअह महमहं तह भणे ॥ १ ॥
End:
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as विविपयारिहिं मेरुसिहरि विहिणा विहिउ ।
जिणजम्मणमज्जणु तोसियसज्जणु कुण्ड भविय भव - भयरहिउ ॥ २५ ॥ षट्पंचाशद् दिक्कुमारीस्तवनं ॥ ५ ॥
प. २३९-२४०
(४९) रत्नत्रय.
Beginning:
नवकारेण विबोहो अणुसरणं सावओ वयाइं मे जोगो । चियवंदणयं पञ्चक्खाणं तु विहिपुत्रं ॥ १ ॥
तह चेइयहरगमणं सकारो वंदणं गुरुसयासे । पश्चक्खाणं सवणं जइ पच्छा उचियकरणिज्जं ॥ २ ॥
श्रावक - बार व्रत हुंति । कवण ति ? | पांच अणुव्रत । त्रीणि गुणव्रत । चियारि शिख्याव्रत । पांच अणुव्रत । कवणि ? । स्थूलप्राणातिपात - निवृत्ति १ । स्थूलमृपावाद - .