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No II. KHETARWAISI
मल्लिसामि जिणराय - पाय निरवाय मुणेसू
तासु चरिउ अच्छरिउ भुवणि संखेवि भणे ॥ १ ॥
(३५) महावीरचरित्र ( अपभ्रंश ).
Beginning:
एगूणवीसम्म डिजिणह चरियं इह जय - हिउ चंदकंति - सुपवित्तिणीए विन्नत्तिं विरइउ । चविसंघ देउ लच्छि सग्गह निरुवसग्गह
अणुवग्ग वग्ग सिरिजिणपह लग्गह ॥ ५० ॥ मत्तछंद विणिम्मियह गंथ - माणु पन्नास । चरि गुणंत सुत वि भवियण पुज्जई आस ॥ मल्लिचरित्रं समाप्तं ॥
End:
सुमरवि सिरिजिणवद्धमाणु गुण-मणि - रयणायरु तासु चरिउ जंपेमि किं पिवेरग्गह आयरु | अवरविदेह गाम - सामि नयसारु भिहाणू
अडवि समण पह-गमण सम्मु सोहम्म विमाणू ॥ १ ॥
( ३६ ) जम्बूचरित्र ( अपभ्रंश ).
पणमवि सिरिअरिहंत सिद्धगण उवज्झायहं
समह सुमहं सव्वलोअ समभाव समायहं ।
इय पंच नवकारु सारु संसार - तरंड
पढमं मंगल होइ लोइ गुण - रयणकरंडहं ॥ २४ ॥ श्रीमहावीरचरितं रासेनापि दी ( गी ) यते ।
Beginning:—
प. २०२-२०६
पढमभवे भवदेवो गहियवओ पढमकल्पि सुर पवरो । रायस्य सिवकुमारो कय - बारसवास - तव - सारो ॥ १ ॥
जंबूचरित्रं समाप्तं ॥
प. २०७ - २०९
बारस नवाणुए भद्दव सिय पडिव गुरि समुद्धरियं । धन्नासीभासाए भणियध्वं संघभद्दकए । २० ॥
(३७) सुकोशलचरित्र ( अपभ्रंश ).
प. २०९-२१२
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