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PATTAN CATALOGUE OF MANUSCRIPTS जसु गुण-गहणु सुरिंदिहिं कीजइ सो रेवयगिरि कसु उवमीजइ ? जिणपहि लग्गिउ भव-फलु लीजइ जिणवर-आणहं सो वंदीजइ जं जिण-आणा निरुवमु तित्थू एउ गणहरिहिं कहिउ परमत्थू ॥
नेमिनाथरास। (३२) भावनाकुलक by जिनप्रभ. प. १८७-१९० Beginning:
सुमरिवि पंच परमिट्ठी थुइ तिजगगरिद्धी(ही)
अनु जिण-वाणि विसिट्ठी मोक्ख-पह दिट्ठी नमवि चलण सिरिरिसहजिकिदह मंडण सिरिसित्तुज्जगिरिंदह चउविहधम्मह भावण सारू भणउ रासु भवियण-गल-हारू दुल्लह पाविऊ माणुसजम्मू भो भो भविय ! कुणउ जिणधम्मू
दाण सील तव भावण रम्मू तुट्टइ तुम्हहं जिव गुरुकम्मू ॥ १ ॥ Endia
एवं चउविहधम्म-पभावू बुझिउ जिणवर-समय-सहावू । उज्जमु कुणउ जिणप्पहि लग्गिउ मोक्खकए सुविवेगिहिं जग्गिउ ॥ ११ ॥
चतुर्विधभावनाकुलकं समाप्तं । (३३) अन्तरगरास (अपभ्रंश ) by जिनप्रभ. प. १९०-१९४ Beginning:
पणमिउ पढमजिणिंदू सेत्तुज्जह मंडणु
भणउं जीवसंबोहू भव-दुक्खह खंडणु रयणि-विरामे एउ भाविजइ गेहि पलित्तइ किमिह सूइज्जइ ? जाणउं जीवहं तिहुयण गेहू जाव अस्थि थेवो वि सिणेहू । कोवग्गिहिं पज्जलिउ निरंतर माण-पवणि पूरिउ आभितरु
उट्ठिय माया-जालि विसाला पसरिय जा लाभिंधणमाला ॥ End:ताहे जिय जिण-सूरिहिं भासिउ करि जिणधम्मु मा उ विणासिउ ।। ११ ।
अंतरंगरासः समाप्तः । मंगलं महाश्रीः । (३४) मल्लिनाथचरित्र (अपभ्रंश ) by जिनप्रभ. प. १९४-२० Beginning:
पणमवि सिरि[उ]सहाइ-वीरपजंतजिणेसरा
तिहुयणसिरि-सवणावयंस ! नय-नलिणदिणेसर ।