SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 270 PATTAN CATALOGUE OF MANUSCRIPTS जसु गुण-गहणु सुरिंदिहिं कीजइ सो रेवयगिरि कसु उवमीजइ ? जिणपहि लग्गिउ भव-फलु लीजइ जिणवर-आणहं सो वंदीजइ जं जिण-आणा निरुवमु तित्थू एउ गणहरिहिं कहिउ परमत्थू ॥ नेमिनाथरास। (३२) भावनाकुलक by जिनप्रभ. प. १८७-१९० Beginning: सुमरिवि पंच परमिट्ठी थुइ तिजगगरिद्धी(ही) अनु जिण-वाणि विसिट्ठी मोक्ख-पह दिट्ठी नमवि चलण सिरिरिसहजिकिदह मंडण सिरिसित्तुज्जगिरिंदह चउविहधम्मह भावण सारू भणउ रासु भवियण-गल-हारू दुल्लह पाविऊ माणुसजम्मू भो भो भविय ! कुणउ जिणधम्मू दाण सील तव भावण रम्मू तुट्टइ तुम्हहं जिव गुरुकम्मू ॥ १ ॥ Endia एवं चउविहधम्म-पभावू बुझिउ जिणवर-समय-सहावू । उज्जमु कुणउ जिणप्पहि लग्गिउ मोक्खकए सुविवेगिहिं जग्गिउ ॥ ११ ॥ चतुर्विधभावनाकुलकं समाप्तं । (३३) अन्तरगरास (अपभ्रंश ) by जिनप्रभ. प. १९०-१९४ Beginning: पणमिउ पढमजिणिंदू सेत्तुज्जह मंडणु भणउं जीवसंबोहू भव-दुक्खह खंडणु रयणि-विरामे एउ भाविजइ गेहि पलित्तइ किमिह सूइज्जइ ? जाणउं जीवहं तिहुयण गेहू जाव अस्थि थेवो वि सिणेहू । कोवग्गिहिं पज्जलिउ निरंतर माण-पवणि पूरिउ आभितरु उट्ठिय माया-जालि विसाला पसरिय जा लाभिंधणमाला ॥ End:ताहे जिय जिण-सूरिहिं भासिउ करि जिणधम्मु मा उ विणासिउ ।। ११ । अंतरंगरासः समाप्तः । मंगलं महाश्रीः । (३४) मल्लिनाथचरित्र (अपभ्रंश ) by जिनप्रभ. प. १९४-२० Beginning: पणमवि सिरि[उ]सहाइ-वीरपजंतजिणेसरा तिहुयणसिरि-सवणावयंस ! नय-नलिणदिणेसर ।
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy