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Pattan CATALOGUE OF MANUSCRIPTS Beginning:
नंदउ पुंडरीउ गोयमपमुह गणहर-वंसु ।
नाम-गहेण विह जाहं फुडु जायइ सिव-सुह-फंसु ॥ १ ॥ End:
सहला ताहं जि दीहडा सहला ताहं जि मास । जे गुरु वंदइ विहिपरि ताहं जि पूरिय आस ॥ १५ ॥
गुरुस्तुतिचाचरि गूर्जरीरागेण । (२७) मयणरेहासंधि ( कडव ५). प. १६७-१७३ Beginning:
निरुवमनाणनिहाणो पसमपहाणो विवेयसनिहाणो ।
दुग्गइदारपिहाणो जिणधम्मो जयइ सुहकम्मो ॥१॥ सुमरिवि जिणसासणु सुहनिहि-सासणु सिरिनमिमहरिसि मणि धरिउ ।
पभणिसु संखेविहिं मयणरेह-महासइ-चरिउ ॥ २ ॥ End:
एसा महासईए संधी संधी व संजमनिवस्स । जं नमिनिवरिसिणा सह ससक्करा खीरसंजोगो ॥ २॥ बारह सत्ताणउए वरिसे आसोअ-सुद्ध-छट्टिए । सिरिसंघपत्थणाए एयं लिहियं सुआभिहियं ॥ ३ ॥
मयणरेहासंधिः समाप्तः ॥ (२८) अनाथिसन्धि (अप.) by जिनप्रभसूरि. प. १७३-१७६ Beginning:
जस्स ज वि माहप्पा परमप्पा पाणिणो लहुँ हुँति ।
तं तित्थं सुपसत्थं जयइ जए वीरजिणपहुणो ॥ १॥ विसएहिं विनडिउ कसाय-जगडिउ हा ! अणाहु तिहुयण भमइ । जो अप्पं जाणइ सम-सुहु माणइ अप्पारामि सु अभिरमइ ॥ २ ॥ रायगिहि नयरि सेणीउ राउ गुरुभत्ति निवेसिय वीयराउ ।
सो अन्न दिवसि उज्जाणि पत्तु मुणि पिक्खिवि पणमइ नमिय-गत्तु ।। ३ ।। End:
चारुचउसरणु-गमणो दाणाइसुधम्मपत्तपाहे उ । सीलंगरहारूढो जिणपहपहिओ सया सुहिओ ॥ १३ ॥
अणाथियासंधि । कडव २ (?) - (२९) जीवानुशास्तिसन्धि by जिनप्रभ. प. १७६-१७९