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________________ No. II KHETARWASI तिहिं भुवणिहिं थुब्वंतु जिणु दिक्खिउ चमकिउ चित्ति । अहह ! अहो ! वपु अच्छरिउ भूसिउ रिद्धि विचित्ति || हो गोयम ३ ॥ End:-- गोयमसुरियकुलयं रइयं पढमंजरीए भासाए । कत्तिय अमावसाए अट्ठावन्नस्स वरिसस्स ॥ २६ ॥ एयं जे भव्वजिया भावेण सया गुणंति निसुणंति । उच्छिन्ननेहनियला ते जंति सिवं जिणपण || २७ ॥ अणमहासिद्धिसंजुओ जयइ गोयमो भयवं । जस्स पसाएण जवि साहुणो सुत्थिया भरहे || २८ ॥ (२४) ऋषभजिनजन्माभिषेक. प. १५९--१६२ Beginning:— End: जय ज (जु) गादिजिनिंदो पयासिया से सपढमनयविंदो | घणकम्म - वणइंदो नयनरवर - खयर - देविंदो ॥ १ ॥ जो पण संकंदणो नाहिनिवनंदणो तिहुयणाणंदणो रिसह जिणू तासु सिरिजम्ममहूसवो पभणेसु.... End: जह हवियउ तियसासुरिहिं सामिउ रिसहजिणिंदु | तह न्हावर विहिणा भविय ! सिव- सुह-विल्लिहि कंदु ॥ १४३ ॥ इति जन्माभिषेक स्तुतिः समाप्ता । प. ९६२ - १६५ (२५) चाचरिस्तुति ( अपभ्रंश ). Beginning:— जय जय सिरिरि सहपहु तिहुयणि पढमजिणिदु । सेतुंजमंडणू तम - तिमिरनासण नवउ दिणिंदु || नयण सलून जिण पहु कह वि न मेल्हण जाइ | सरीरु पाच्छउं वाहुडइ मणु पुण तहि जि ठाइ ॥ ३४ ॥ aise छोटा माथइ चोटा अवरहं कापडिय होइ । देवंग वेस सिरि लंवा केस जिणवर कापडिय जोइ ॥ ३५ ॥ नंदउ जिणवर - धम्म जगि नंदउ चउविह संघु । जाहं पसाय सिद्धिवहु भवियण देयद आघु ॥ ३६ ॥ चाचरिस्तुतिरियं । वेलाउलीरागेण । (२६) गुरुस्तुतिचाचरि (अपभ्रंश). • प. १६५ - १६७ 267
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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