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________________ 184 Pattan CATALOQUE OF MANUSCRIPTS End: सुयदेवय व जासु पसत्थ पंकयकरपोत्थयकमलहत्थ । करकयकहं जसु पसन्न सुलक्खण-सुनय-विणय-वन्न हिमगिरिसुय व जा भव-विरत्त न(त)व-चरणसमुज्जय-नियम्ममत्त अभत्थिएण दलजियाए विणएण साहुजणरजियाइ पउमसिरिचरिउ मई रइउ एउ जो पढइ सुणइ तसु होइ सेउ सुयदेव[या] मणि ताण बुद्धि देउ अवाइ दुक्खइ अवहरेउ अणुगय पंकयदलच्छी घरणी व तासु घरि वसइ लच्छि सो जाणइ धम्माहम्म-भेउ अचिरेण होइ तसु दुक्ख-च्छेउ ससिपालकवुकय आसि नाहु जसु विमलु कित्ति जगु भमइ साहु । सुनिम्मलि वंसि समुन्भवेण पउमसिरिचरिउ किउ धाहिलेण । कविपासह नंदणु दोसविमद्दणु सूराईहिं महासई हिं जिण-चलणहं भत्तउ तायह पोत्तउ दिवदिहि निम्मलमइहिं ॥ १६ ॥ जावइयं सज्झाए काले[1] वट्टइ सुहेण भावेण । ताव खवेइ पुराणं नवयं पावं न बंधेइ ॥ मंगलं महाश्रीः। (५) अञ्जनासुन्दरीकथा ( अपभ्रंश ). प. ५४-५५ (अपूर्ण) Beginning: कुल-भय-विहवंसंपुंनिमहि अन्नुहि जंमि उ यत्ताई। जण ! निसुणहु अंजणसुंदरिहि जगे सुह-दुक्खाई पत्ताई ॥ पणमवि मुणिसुब्वयसामियहु नेव्वाणसिद्धिसुहगामियहो जिणसासणभत्तिय एकमण कह पुनपवित्त सुणेहु जण ! उत्तुंग विउल विसस्थि वसिय विय दाहिण दिसिहिं महिंदपुरे धण-कणग-समिद्धजि(ज)णालएहिं जिणभवणेहिं रयणविसालएहिं सोहंति जिण-चित्तालये........ (६) जन्माभिषेक (अपभ्रंश). प. १-८ Beginning: कंपिउ रयणासणु तवनिन्नासणु मिलियछप्पन्नदिसाकुमारीए । तिसलाए सुइकम्मं विहियं जम्ममि जस्स सो जयउ ॥ १ ॥ सो जयउ जस्स समकालचलियसिंहासणेहिं सक्केहिं । विहिओ जम्मणमहो सुमेरुसिहरम्मि मिलिएहिं ॥ २ ॥
SR No.011005
Book TitleDescriptive Catalogue of Manuscripts in Jain Bhandars at Patan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchandra B Gandhi
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1937
Total Pages591
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size32 MB
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