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भक्तो के हृदय निवासी,
भक्तिमय कुसुम की राशि, यह लो, लाखो जन के मन के रखवारे ।
फिर क्या उपहार सजाए ?
फिर क्या प्रभु चरण चढाए ? इससे बढ, वस्तु कौन-सी पास हमारे ।
तुमने जो राह दिखाई,
घट-घट मे ज्योति जगाई, छाइ है, यत्र-तत्र रो-रो मे सारे ।
प्रतिपल तुम पद-चिह्नो पर,
चलते व चलेगे जी भर, इससे बढकर क्या स्मारक प्रभो। तुम्हारे ।
प्राणी-प्राणो दिल-प्रागण,
रोपें श्रद्धाकुर क्षण-क्षण, जीवन के कण-कण में यह प्रण है प्यारे ।
हममे हो अतुल मनोवल,
कायरता क्षय हो बल-जल, अविरल ऐसी करुणा का स्रोत बहा रे ।
श्रुति मे, स्मृति मे, सस्कृति मे,
रमते रहो तुम कृति-कृति मे, गूजे कोटि-कोटि 'तुलसी' जय-नारे । देव प्रकरण में आचायवर गाते हैं
लो जन जगत के तौर्यकर मेरा प्रणाम लो। दो वीतरागता का वर, वन्दन निष्काम लो। तुम तीर्थ नही तीर्थकर, क्या गुण गरिमा गाए।
भव-सिन्धु-भवर मे भटके, (इन) भक्तो को थाम लो ।। स्वाध्याय प्रेमी वन्धुपी के लिए तो इस ग्रथ की निरुपम उपयोगिता है ही, पर मर्यादा महोत्सव आदि पर्व सम्बद्ध गीतिकारो का व्यवस्थित सकलन