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________________ जागृति जैन की जग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु । सुतेरापन्थ पग-पग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ।। तुम्हारे नाम की आभा अलौकिक विश्व मे छाई। उमडता हर्प रग-रग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥१॥ अनेको कप्ट जो सहकर जगाई जैन की ज्योति । रोशनी प्रकट जगमग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥२॥ रची मर्याद की सरणी खची ज्यो तार चीवर मे । चरम मीमा सूक्ष्म दृग् मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥३॥ अठारह उनमठे मे जो लिया था लेख हाथो से । विलोके आज के छक में, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥४॥ थपना की जो थावर दिन पुण्य परिणाम हम देखें। महोत्सव माघ के मग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥५॥ व्यवस्थित संघ है सारा तुम्हारी पूज्य करुणा से। आज के घोर कलियुग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ।।६।। भारमल, राय, जय, मघवा,सुमाणिक, डाल गणि कालू। उदित ज्यो सूर्य हो नभ मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ॥७॥ सहन दो एक मे 'तुलसी', महोत्सव माघ की महिमा । चतुग्गट भाग्य मोभग मे, जयो भिक्षु जयो भिक्षु ।।८।। श्रमण है एक शत पिचपन, यमणिया तीन युत चउगत। भक्ति ग्म + मे प्रगमे, जयो भिक्षु जयो भि । पि० स० २००१, मर्यादा-महोत्मय, गुजानगढ़ (राज.) पप-~-गुने पामगरले जगन तो __ग] [१९
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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