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वीर प्रभु के चरण कमल में वन्दन शत-शत वार करे । तन से, मन से और वचन से अभिनन्दन कर भार हरें।
इन्द्रभूति से अनमि नमाये अपने आध्यात्मिक बल से । गिरते कितने गैर बचाये हत्यारों की हलचल से। उपकृत हम चिर ऋणी आपके समय-समय उपकार स्मरे ॥१॥ अनेकान्त आदर्श दिखाया वौद्धिक जगत जगाने को। उत्पीडित वा शोषित मानवता का मान बढाने को। तत्त्व अहिंसा दिया कि उससे दोनों का उद्धार करें ॥२॥ मूक, निरीह, सहस्रों प्राणी यज्ञों के आवेदों में। होमे जाते कितने बच्चे, मानव उन नरमेधों में । उन पर क्या ? उन हिस्र मनुष्यों के ऊपर आभार धरें॥३॥ संघ-संगठन की वह मौलिक, प्रवल शक्ति जो तुमने दी। उसे अनेकों उत्तरवर्ती प्राचार्यों ने अपना ली। 'तुलसी' उसके सबल सहारे तेरापन्थ-प्रचार करें ॥४॥
लय-बाजरे की रोटी पोई
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[श्रद्धेय के प्रति