________________
८]
ग्राज
चारों ओर घोर शान्ति जन-जन को सताती । रो रहा मानव हृदय यों सिकुड़ती जाती है छाती । इस विषाक्त वृत्तान्त में तू ही सहारा एक शान्ति । घ्या रहे सव दूर हो झट
ध्यान तेरा क्लेश - कान्ति ।
अमर ग्राशा को लिए 'तुलसी' चरण में शिर झुकाया । देव ! दो दर्शन तुम्हारा शान्ति जिन मैं शरण आया ॥ ५॥
[ श्रद्धेय के प्रति