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असे.खसमस्त असयम जीवन-बछा राग कहायाजी। अमन चैन हित भिक्षु वैन भविजन सरधायाजी ।।८।। इतर रहस्य अजाण छाण विन भोला नै भरमायाजी। गौ-बाड़ो अरु प्रोतु अखाड़ो राड़ो ठायाजी ।।६।। मुख-मुख में अरु लेख-लेख मे भेख-भेख भिडकायांजी। भैक्षव पन्थी दान दया रा पाया ढायाजी ॥१०॥ अगर पूछलै कोई पाछो आगम गम सुनवायाजी। तो कहै सामायक-धर साधु नहि छुड़वायाजी ॥११॥ तो छुडाण मे शकीलों प्रभु कद ना फरमायाजी । नाहक भोली दुनिया वंचन तूद उठायाजी ॥१२॥ 'मुञ्च, मुञ्च, मामुञ्च' सही दृष्टान्त शान्त चित्त ध्यायाजी। इम जैनेतर अन्थे पिण जिन मत अपनायाजी ।।१३।। धर्म नीति रो मार्ग निभावत निर्मलता निर्मायाजी। वर्तमान गृह नीति हेतु हा ना न कहायाजी ॥१४॥
ओ सत्यार्थ प्रकाशक सत्पथ दर्शक दीपां-जायाजी। अखिल जगत आभारी बारी है इण न्यायाजी ॥१५॥ अतएव नित भिक्षु भिक्षु भविजन रटन लगायाजी । अल्पागे पिण उऋण होवण परम उम्हायाजी ।।१६।।' भारीमाल, नप, जय, मघ, माणक, डाल, काल गणरायाजी। हुलसी 'तुलसी' भिक्षु सुमरण स्तवन रचायाजी ।।१७।। संवत दोय हजार शुक्ल पख भाद्रब मास सुहायाजी । भिक्षु चरम कल्याण जाण मन घन उमड़ायाजी ॥१८॥ गंगाशहर नहर सुकृत री मत को भवि तरसायाजी । च्यार तीरथ चिहुं चोक चौपडा भुवने छायाजी ।।१६।।
वि० सं०..२००० चुरम महोत्सव, गंगाशहर (राज.)
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[श्रद्धेय के प्रति