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गृह ]
राग-द्वेष क्लेश रा कारण तारण तरण बतायाजी । उत्तम अर्थ अनोपम भिक्षु स्वाम
सभायाजी | दीपाजी रा जाया म्हारा रोम गय विकसायाजी । वल्लुजी रा जाया जिन मत सतपथ मय दरशायाजी । बोधाकुर उगाया वचनामृत वरमायाजी ॥
असयती रो जीवणो मरणो वाछन उभय समायाजी | आदिम तत्त्व अलौकिक वरणत भरम भगायाजी ॥१॥
प्रथम संयतामयत लक्षण पूज्य विचक्षण गायाजी । -सुन-सुन श्रोता निज तन मन मे मोद मनायाजी ॥२॥
प्राण-विघात, वात मुख मिथ्या, करं चौर्य चित चायाजी । मिथुन, परिग्रह विग्रह कारण जो मुख वायाजी ॥३॥
स्पष्ट ग्रमयति इत उत जोवो जैनागम मे सर्व विरति बिन सयति नाहिं साफ
देशव्रती पिण भगवती न्याये ग्रमयति मे व्रत तिणरा अल्पाश नहिं लेखा मे
भायाजी । सुनायाजी || ४ ||
प्रायाजी । न्यायाजी ॥ ५॥
व्रत जीवन या पुद्गल-सुख बछया अरु वछायाजी । हवं असयतित्व अनुमोदन मोद बढायाजी ॥६॥
नय - प्रादिनाय श्रादीवर भिक्षु
स्वीय असयम नहि अनुमोद सयमपर मुनिरायाजी । तो परो अनुमोदन रोधत किम दुरितायाजी ||७||
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