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________________ दशम अध्याय रहा हुआ रस-जिससे पक्षी का शरीर बनता है, समय से पहले ही ... सूख जाए । परन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि जिस समय लोग ..अण्डा खाते हैं, उस समय भी वह निर्जीव है। यदि वह निर्जीव होगा तो फिर उसमें रस नहीं रहेगा। उसमें रहा हुपा रस उसकी सजीवता को सिद्ध करता है । इस दृष्टि से अण्डा खाना भी हिंसा है, पाप है। यदि थोड़ी देर के लिए हिंसा की दृष्टि को छोड़ भी दें तव भी अण्डा एवं मांस खाना पाप है तथा दोनों पदार्थ मानव के लिए अभक्ष्य हैं। चाहे कैसा भो अण्डा.या पशु-पक्षी क्यों न हो वह. नर-मादा के द्वारा .: सेवित मैथुन से ही पैदा होता है। आजकल कुछ वैज्ञानिक नलियों में अण्डे: एवं पशु पक्षी पैदा करने का प्रयत्न करने लगे हैं, प्रयोगशालाओं " में इसका परीक्षण हो रहा है। वहां भले ही नर-मादा की प्रत्यक्ष मैथुनक्रिया दिखाई न दे. परन्तु उनका जन्म उन्हीं चीजों से होता है। ओर मैथुन-क्रिया से वीर्य और रज का संयोग होता है और उससे मादा के "गर्भ में सन्तान की उत्पत्ति होती है। और वैज्ञानिक भी नर और मादा के वीर्य और रजकणों को एक नली में मिलाते हैं और जितनी गर्मी एवं अन्य साधन-सामग्री गर्भ में मिलती है. वही सारी सामग्रो उसे वैज्ञानिक साधनों द्वारा पहुंचाई जाती है। जिससे उस प्रकार के प्राणी की उत्पत्ति होती है। इससे स्पष्ट है कि अण्डा चाहे वह गर्भ से पैदा हुप्रा हो.या वैज्ञानिक साधनों से भी क्यों न उत्पन्न किया गया हो, अब्रह्मचर्य हो का प्रतिफल है अतः मनुष्य के लिए अभक्ष्य है । प्राध्यात्मिक दृष्टि से अण्डा एवं मांस मनुष्य का आहार नहीं हो सकता। ... प्रसन्नता को बात है कि पूर्व में उदित हुअा अहिंसा का प्रकाश· पुञ्ज कई शताब्दियों के बाद पश्चिम के क्षितिज पर फैल रहा है। भौतिकवाद की चकाचौंव में चुंघियाए मानव अहिंसा के प्रकाश में
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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