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________________ ...४१३ दशम अध्याय करने जैसी बात तो नहीं है । फिर मांसाहार का निषेध क्यों किया जाता है ? . .... ... .. उत्तर- यह नियम प्रकृति का नहीं,. पशु जगत का है और वह भी ... उन्हीं पशु पक्षियों का है, जो मांसाहारी हैं, हिंस्र जन्तु हैं, सर्व-साधा• रण पशु-पक्षियों का भी ऐसा स्वभाव नहीं है। परन्तु, मनुष्य सारे · प्राणी जगत से ऊपर है। अतः उसकी हिंस्र पशुओं के साथ तुलना करना तथा अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए “मत्स्य-न्याय" का : उदाहरण देना अपनी अज्ञानता को प्रकट करना है। हिंस्र पशुत्रों में . एक-दूसरे को या बड़े द्वारा छोटे को निगलने का जो दोष पाया जाता है, यह उनकी अज्ञानता का परिचायक है। उनमें बुद्धि, विवेक एवं __ सोचने-समझने की शक्ति का पूरा विकास नहीं हो पाया है। परन्तु, - मनुष्य को सोचने-विचारने के लिए दिमाग मिला है और उसको .. वुद्धि भी काफ़ी विकसित है । फिर वह विवेक-पूर्वकं गति नहीं करता है, अपनी शक्ति निर्बल एवं कमजोर प्राणियों के संरक्षण में नहीं .: लगाता है, तो वह हिंस्र पशु से ऊपर नहीं उठ पाया है, ऐसा कहना ... चाहिए । आकार-प्रकार से इन्सान होते हुए भी कर्तव्य एवं कार्य को ..अपेक्षा से वह हैवान है, राक्षस हैं, खूखार जानवर है । भारतीय संस्कृति के गायक ने भी कहा है-. .. .. ........ ... "आहार-निद्रा-मय-मैथुनञ्च, . . . . . . .: . सामान्य मेतत् पशुभिर्नराणां । . धर्मो हि तेपामधिको विशेषः, . ::. : धर्मेण हीना पशुभिः समाना " ......
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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