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________________ ४११ भी नहीं पछाड़ सका । यह मांसाहार पर शाकाहार की विजय है । इस से स्पष्ट हो जाता है कि जो शक्ति, जो ताक़त शाकाहार में है वह मांसाहार में नहीं है । मांसाहार से- आवेश, क्रोध एवं वासना में, अभिवृद्धि होती है और शाकाहार से क्षमा, शान्ति एवं सात्त्विकता का विकास होता है । : - प्रश्न- आज देश में जनसंख्या बढ़ रही है और अन्न का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं हो रहा है। अतः अन्न की कमी को पूरा करने के लिए मांस खाया जाए तो उसमें क्या दोष है? उत्तर- यह तर्क बिल्कुल गलत है कि अनाज की कमी मांस से पूरी हो जाती है । यदि ऐसा होता तो बंगाल-विहार आदि प्रांतों के लोग जो अधिक संख्या में मांसाहारी हैं, अकाल के समय भूख से क्यों मरते हैं और अन्न की मांग क्यों करते हैं ? इससे स्पष्ट है कि मांस अन्न की कमी को पूरा नहीं करता । क्योंकि मनुष्य जंगली जानवरों की तरह केवल मांस खाकर पेट नहीं भर सकता । यदि वास्तव में देखा जाए तो वह मांस-मछली पेट भरने के लिए ही नहीं, बल्कि जिह्वा के स्वाद के लिए खाता है । इसलिए मांस से अन्न की कमो पूरी नहीं होती, बल्कि बढ़ती है । जैसे - केवल रूखी-सूखी रोटो खाई जाए तो मनुष्य थोड़े-से भोजन से काम चला सकता है। परन्तु जब वह घी एवं मक्खन लगा कर शाक-सब्जी, मिर्च-मसाले एवं चटनी आदि के साथ खाता है, तो शाक-सब्जी प्रादि के कारण रोटी में कमी नहीं होती, बल्कि अधिक खाता है । इसी तरह मांस आदि के साथ भी अन्न की खपत बढ़ती है । अतः अन्न की कमी मांस खाने से पूरी हो जाएगी, यह आशा रखना बिल्कुल गलत है । जितना मांसाहार बढ़ेगा, उतना ही अन्न का अकाल पड़ेगा। क्योंकि मांस के दशम अध्याय
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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