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________________ 800 ४०७ manan दशम अध्याय v Nov ~ ~ w wwwwww वास्तविक विकास कह सकते हैं । दुर्भाग्य से, आजकल इस विकास में कमी आ रही है । हमारा चिन्तन भी स्वार्थ-साधने में लग रहा है । यह भारत के लिए चिन्ता की बात है। काश! भारतीय अपने व्यक्तिगत एवं पारिवारिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर अपने पूर्वजों के मार्ग पर गतिशील हों तो भारत की उन्नति में चार चांद .लगते देर न लगे। इतने लम्बे विवेचन के बाद यह स्पष्ट हो गया कि मांसाहार स्वभाव में उत्तेजना एवं क्रूरता जागृत करता है, विवेक को समाप्त करता है तथा पतन या विनाश की ओर ले जाता है। और वस्तुतः आज तक मांसाहार के आधार पर किसी ने विकास नहीं किया। यदि कोई भौतिक क्षेत्र में फूला-फला भी है, तो वह स्वयं के एवं जगत के जीवों के लिए दुःख रूप एवं कष्टकर हो सिद्ध हुआ है। अतः यह .... कहना ग़लत है कि मांसाहार के आधार पर पाश्चात्य देशों ने उन्नति . की है । वस्तुतः उन का भौतिक एवं दिखावटी विकास विनाश एवं पतन रूप में ही हुआ है, अतः उसे विकास का नाम देकर मांसाहार . को परिपुष्ट करना बुद्धि का दिवाला निकालना है।'' प्रश्न- मांसाहार से शक्ति एवं साहस बढ़ता है। शाकाहारी दुर्वल और कायर होते हैं । उन में अत्याचार और अन्याय का प्रतिकार करने का सामर्थ्य नहीं रहता। इससे अत्याचारियों का हौसला बढ़ जाता है। अतः उनका दमन करने के लिए मांस सेवन करना चाहिये । संसार के सभी सैनिक शक्ति से संपन्न देश समिष-भोजी हैं । फिर इस का निषेध क्यों ? उत्तर- मांस खाने से बल बढ़ता है, यह कहना ग़लत है । यह तो सूर्य
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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