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________________ ९४१ प्रश्नों के उत्तर अभिमान कपाय की कमी के कारण ऊपर ऊपर के देवों में उत्तरोत्तर कम ही होता है । प्रश्न -- जैनागमों में स्वर्ग और नरक का बड़े विस्तार से वर्णन किया गया है, जैनाचार्यों ने स्वर्ग और नरक के विवेचन को इतना महत्त्व क्यों दिया है ? उत्तर - यह सत्य है कि जैनागमों का अधिक भाग स्वर्ग और नरक के वर्णक पाठों से भरा पड़ा है और यह भी सत्य है कि आज के शिक्षित व्यक्ति को स्वर्ग और नरक सम्वन्धी वर्णन से प्रायः चिढ़ सी हैं, तथा वह इसे कल्पना समझता है, उसके विचार में स्वर्ग सम्बन्धी ज्ञान का कोई उपयोग नहीं है । तथापि जैनाचार्यों ने स्वर्ग-नरक सम्बन्धी वर्णन को महत्त्व किया है, इसके पीछे एक रहस्य है और वह निम्नोक्त है " - यदि हम श्रात्मतत्त्व की सत्ता को स्वीकार करते हैं तो हमें स्वर्ग और नरक भी स्वीकार करने होंगे। जो व्यक्ति श्रात्मतत्त्व में विश्वास नहीं रखता उस के लिए स्वर्ग नरक कल्पना मात्र है, किन्तु आत्मतत्त्व में विश्वास रखने वाला व्यक्ति स्वर्ग नरक का कैसे विरोध कर सकता है ? क्योंकि स्वर्ग-नरक भी हमारे भूमण्डल के विशिष्ट अंग हैं। ऐसी दशा में सर्वज्ञ सर्व दर्शी जगत का अधिकांश भाग बिना वर्णन किए कैसे छोड़ सकते थे ? नरक-स्वर्ग-सम्बन्धी वर्णन निकाल देने पर कर्मवाद, आत्मवाद, मुक्ति यादि सभी सिद्धान्त समाप्त हो जाते हैं, और जैन धर्म का स्वरूप ही नष्ट हो जाता है । अतः आत्मवादी जैनाचार्यों के लिए स्वर्ग-नरक का वर्णन करना प्रत्या : वश्यक था । सिद्धशिला :--- सर्वार्थसिद्ध विमान से १२ योजन ऊपर ४५ लाख योजन की
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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