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________________ ९०५ प्रश्नों के उत्तर जघन्य स्थिति २२ और उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम की होती है । असंज्ञी+ प्राणी मरकर पहले नरक में उत्पन्न हो सकता है, आगे नहीं । भुजपरिसर्प पहले दो नरक तक, पक्षी तीन भूमि तक, सिंह चार भूमि तक, उरग पाँचवें नरक तक, स्त्री छठे नरक तक, मत्स्य और मनुष्य मर कर सातवें नरक तक जा सकता है । भाव यह है कि तिर्यञ्च और मनुष्य ही नरक में पैदा हो सकते हैं, देव और नारकीय नहीं । देव और नारकीयों का नरक में उत्पन्न न होने का कारण उनमें वैसे ग्रध्यवसाय का अभाव ही समझना चाहिए । पहले तीन नरकों के नारकीय जीव मनुष्य जन्म पाकर तीर्थंकर पद पा सकते हैं, चार नरकों के नारकीय जीव मनुष्य-गति में निर्वाण पद भी पा सकते हैं। पांच नरकों के नारकीय जीव मनुष्य वन कर संयम का लाभ ले सकते हैं । छः नरकों से निकले हुए नारकीय जीव, देशविरति ( श्रावक - धर्म) और सात नरकों से निकला हुआ नारकीय जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है। भाव यह है कि नारकीय जीव का सदा के लिए पतन नहीं हो पाता । वह नरक से निकल कर मनुष्य जन्म लेकर सत्य, अहिंसा की साधना द्वारा अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है । जिस प्रकार मनुष्य गति का प्राणी आध्यात्मिक समुच्चता : • +मन वाले प्राणी को संज्ञी कहते हैं, मन से रहित प्राणी असंज्ञी कहलाते हैं । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय सभी जीव असंज्ञी होते हैं । यह सत्य है कि कृमि आदि विकलेन्द्रिय जीवों में भी अत्यन्त सूक्ष्म मन है, इससे वे हित में प्रवृत्ति और अनिष्ट से-निवृत्ति कर लेते हैं, पर उनका वह कार्य सिर्फ देहपात्रोपयोगी होता हैं, इससे . अधिक नहीं। यहां इतना पुष्ट मन विवक्षित है, जिससे निमित्त मिलने पर देहयात्रा के अलावा और भी अधिक विचार किया जा सके, अर्थात् जिससे पूर्व जन्म तक का स्मरण तक हो सके । इतनी विचार की योग्यता वाला मन ही यहां अपेक्षित है । ऐसे मन वाले को हो संज्ञी और इससे वञ्चित प्राणी असंज्ञी वहा जाता है ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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