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________________ rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr सतरहवां अध्याय ~~~~~......... ....... अपना-अपना स्वार्थ साधते हैं। मानवता और विश्वप्रेम की भावना . न जाने कहाँ छिप जाती है। रामायण में वर्णित वकराज ने पम्पासरोवर के निकट मर्यादा पुरुपोत्तम भगवान राम जैसे युगपुरुष को .. भी चारित्र के बारे में भ्रांत बना दिया था और वे इसे धार्मिक सोचने . लंगे थे ? पीछे उनका भ्रम भी दूर हो गया था। आजके स्वार्थप्रिय ... लोग भी रामायण के बकराज की भांति मानव जगत को भ्रान्त कर .. रहे हैं। नैतिकता की चर्चा में अपने को बड़े प्रामाणिक. और सर्वथा दूध धोए प्रकट करते हैं किन्तु जव यांचरण की घड़ी आती है तो वकराज की भांति मछलियों को हड़प कर जाते हैं, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मानवता की अरथी निकाल देते हैं। महाकवि अकबर ने .. ठीक ही कहा है- :-.... ... ... .. . . .... इल्मी तरविक्रयों से ज़वां तो चमक गई । .... लेकिन अमल हैं इनके, फरेवो दगा के साथ ।। ......अाज का युग यंत्रों का युग है। यंत्रों का आश्रय पा कर । .. खाद्य वस्तुएं पहले की अपेक्षा आज अधिक परिमाण में उत्पन्न की .. जा रही है । अन्नोत्पादन खूब प्रगति कर रहा है, टरैक्टरों द्वारा : कृषिकर्म को प्रत्येक दृष्टि से समुन्नत किया जा रहा है । तथापि ... आज मानव रोटी की समस्या का समाधान नहीं कर पाया। अन्ना- भाव के कारण अन्न की स्वल्पता से आज अनेकों राष्ट्र व्याकुल हैं। .. .. हजारों जीवन अन्न न मिलने के कारण मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं। यह सव कुंछ क्यों हो रहा है ? गंभीरता के साथ विचार करेंगे तो इसं .. में स्वार्थमयं वृत्तियों का ही प्रभुत्व मिलेगा। लाखों टन गेहूं तथा अन्य बहुमूल्यखाचं सामग्री इस लिए जला दी जाती है, या नष्ट कर दी। जाती है कि वांज़ार का निर्धारित भाव नोंचे न जाने पावे और उसं . से जो लाभ होता है, वह सुरक्षित वना रहे। विदेशों की वात जाने ...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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