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________________ सोलहवां अध्याय ८५६ N महामहिम मंगलमूर्ति गुरुदेव की स्मारक सामग्री भी नमस्करणीय क्यों नहीं बन सकती ? भक्तराज कवीर के गुरु गोविन्द दोनों खड़े, किस के लागू पाय ? बलिहारी गुरुदेव के, जिस गोविंद दियो बताय ।। ये शब्द तो स्पष्टतया प्रकट कर रहे हैं कि गुरु का स्थान भगवान् से भी ऊंचा, है तब तो गुरुदेव के पुण्य स्मरण की कारण सामग्री की भी अवश्य पूजा होनी चाहिए । पर मूर्ति पूजक ऐसा करते नहीं हैं। जिन वस्तुओं से गुरुदेव की याद आती है, कोई मूर्तिपूजक उसे नमस्कार नहीं करता देखा गया । इस से यह प्रमाणित हो जाता है कि यदि मूर्ति जीवन-निर्माण में सहायक कारणसामग्री का स्मरण कराती है, इस लिए वह नमस्करणीयं है, ऐसा कोई सिद्धान्त नहीं बन सकता और नाहीं इस में बौद्धिक या व्यावहारिक सत्यता है । 2 3. दूसरी बात यह भी है कि मूर्ति का काम यदि केवल भगवान् का स्मरण कराना है, तो मन्दिर में जाने की क्या आवश्यकता है ? क्योंकि मन्दिर जाने की भावना जव मन में आती है तभी व्यक्ति घर से मन्दिर की ओर प्रस्थान करता है, अन्यथा नहीं । जव घर में ही मन्दिर का ध्यान या गया अर्थात् भगवान् का ध्यान या गया, तो फिर मन्दिर में जाने का कोई उद्देश्य नहीं रहता । मूर्ति के आगे खड़ा होने की भी कोई आवश्यकता नहीं रहती। मन्दिर की मूर्ति ने जिस भगवान् का स्मरण कराना था, उस का तो घर में ही स्मरण हो चुका है । प्रश्न- मूर्ति जड़ है, यह सत्य है, किन्तु उस में यदि चेतन की भावना कर ली जाए तो क्या आपत्ति है ? उत्तर- भावना सम्यक और यथार्थ होनी चाहिए, तभी वह. फलवती हो सकती है। लड़की में लड़के की भावना और लड़के में
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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