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प्रश्नों के उत्तर:
वह घड़ी, जो प्रायः सदा गुरुदेव के फट्ट के पास पड़ी रहतीथी, सामायिक आदि अनुष्ठानों के लिए समय की जानकारी तथाव्याख्यान यादि के वास्ते जिस का सदैव प्रयोग होता था, उस को देख कर भी गुरुदेव के पुण्य दर्शनों की घड़ी याद आ जाती है ।
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वह पात्र, जो गुरुदेव के हाथों से गिर कर टूट गया था, तथा जिसके टुकडे गुरुदेव ने उठा कर एकान्त स्थान में रख दिए थे, उनका कोई साधु उपयोग कर रहा है, तो उन्हें देख कर सहसा गुरुदेव का स्मरण हो जाता है । अन्तरात्मा वोल उठती है कि ये उसी पात्र के टुकड़े हैं जो गुरुदेव के हाथ से गिर कर टूट गया था ।
वह माला, जो गुरुदेव ने पलट दी थी, और जिसे गुरुदेव रोज अपने प्रयोग में लाया करते थे, जिस पर " नमो अरिहन्ताणं, नमो सिद्धाणं, नमो यावरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं” इन पांच पदों का मधुर स्वर से जाप किया करते थे । उस माला को हाथ में लेते ही गुरुदेव की मंगलमय पुण्य स्मृति हो उठती है । इसी प्रकार वह पाट जिस पर गुरुदेव श्रधिकतया बैठा करते थे, वह रजोहरण जो गुरुदेव ने पलट दिया है । वह पुस्तक जो गुरुदेव व्याख्यान में लेकर सुनाया करते थे, तथा जिसके सम्बंध में गुरुदेव से एक श्रोता ने प्रश्नोत्तर किए थे । उसे हमें देख कर अपने पूज्य गुरुदेव की याद ग्रा जाती है। यह सब जानते हैं कि गुरुदेव कल्याणकारी हैं, मंगल के पुण्य स्रोत हैं तथा ज्ञान के जीवित विश्व कोष हैं, जिन का क्षण भर का सम्र्पक भी जीवन के मोड़ को मोड़ कर रख देता है, जीवन को अन्धकार से निकाल कर सत्य ग्रहिंसा के महान प्रकाश में ले आता है । ऐसे पूज्य गुरुदेव का जिन-जिन वस्तुओं को देख कर स्मरण होता है, उन को नमस्कार क्यों न किया जाए ? जव मूर्ति केवल भगवान् की स्मारिका होने से नमस्करणीय वन सकती है तो.
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