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________________ सोलहवां अध्याय मूति को देख कर उसी मूर्तिमान पदार्थ का बोध होता है, जहां पहले मूर्तिमान पदार्थ को या तो देखा हो, या उस के सम्बंध में। किसी से कुछ समझ रखा हो । मूर्तिमान पदार्थ में सर्वथा अनभिज्ञ . . व्यक्ति के सामने यदि मूर्ति या जाए तो उसे उसमें कोई जानकारी नहीं हो सकती। यह एक अटल सत्य है। इसे कभी भी झुठलाया। नहीं जा सकता। मूर्तिमान् व्यक्ति से परिचित व्यक्ति यदि उस की : मूर्ति को देख लेता है, और उस की ओर ध्यान देता है, तो उसे . उस मर्तिमान व्यक्ति का स्मरण हो सकता है। यह भी सत्य है, . इस को मानने से भी कोई इन्कार नहीं है। क्योंकि मूर्तिमान . ..पदार्थ को बार-बार देखने से द्रष्टा के मानसपटल पर ऐसे संस्कार : पड़ जाते हैं जो कि कालान्तर में यदि मूर्तिमान व्यक्ति या उस की मूर्ति सामने : या जाए तो एकदम वे पुराणे संस्कार. जागरित हो उठते हैं, परिणाम-स्वरूप द्रष्टा व्यक्ति झट कह देता है कि यह तो : .. अमुक व्यक्ति है, या यह अमुक व्यक्ति की मूर्ति है। इस प्रकार मूर्ति .. पूर्व संस्कारों को प्रवुद्ध करने में कारण बन जाती है। मूर्ति की इस संस्कार-संस्मारकता से किसी को कोई इन्कार नहीं है। . .: मूर्ति संस्कारों की संस्मारिका है, यह सत्य है, किन्तु इसका .यह अर्थ नहीं है कि केवल संस्कारों की प्रबोधिका होने से मूर्ति वंदनीय है या नमस्करणीय है । क्योंकि मूर्ति द्वारा मूर्तिमान पदार्थ ... का स्मरण कराना, कोई अपूर्व घटना नहीं है, केवल मूर्ति की ही यह - विशेषता नहीं है । यह विशेषता तो प्रत्येक पदार्थ में पाई जाती है। : संसार का प्रत्येक पदार्थ संस्कारों का संस्मारक बन सकता है। कोई :.. ... भी ऐसा. पदार्थ नहीं है जो व्यक्ति के तत्सम्बन्धी संस्कारों को प्रवुद्ध ... न करता हो। दुनिया की हर वस्तु अपने-अपने ढंग से किसान . . किसी पदार्थ या घटना की स्मृति कराने में सहायक वन जाती है। यदि केवल संस्कारों की प्रवोधिका होने से सूर्ति वन्दनीय है, ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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