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________________ प्रश्नों के उत्तर ८४५ " और स्वयं जिन्हों ने अपना सारा जीवन भगवती अहिंसा की साधना में लगाया, जो स्वयं कभी पुष्पों का स्पर्श नहीं करते थे, आगे जिन्होंने अपने श्रमण साधकों को पुष्प स्पर्श का सदा के लिए निपेध कर दिया था, उन्हीं महापुरुषों को निमित्त बना कर पुष्प -- जीवों का संहार करना, और उन्हें उपहाररूप से महापुरुपों की प्रतिमाओं पर चढ़ाना कहां तक उचित है, और कहां तक अहिंसक कृत्य है ? ज़रा शान्ति से सोचने की आवश्यकता है । · . हिंसा तो हिंसा ही है, चाहे वह कहीं भी हो, और किसी भी उद्देश्य को ले कर की गई हो। जिस तरह देवी देवतानों के मन्दिरों में भेड़, बकरी, दुम्बा, भैंस ग्रादि पञ्चेन्द्रिय जीवों की बलि देना एक हिंसक कृत्य है, वैसे ही एकेन्द्रिय, जीवों की हत्या. करना भी एक पाप-मय कार्य है । पञ्चेन्द्रिय हो या एकेन्द्रिय, जीवन तो सभी को प्रिय है। सभी जीना चाहते हैं मरना कोई नहीं चाहता । इसी लिए किसी जीव को मारना या सताना पाप माना गया है । फिर एकेन्द्रिय जीवों के शरीर रूप पुष्पों को भगवान की मूर्ति पर चढ़ाना कहां की ग्रहिसकता है ? इस में तो स्पष्टरूप से हिंसा निवास कर रही है । यतः द्रव्य पूजा में यही सब से पहला दोष है, कि वहां हिंसा को ग्रहिंसा का रूप दिया जाता है, और वहां एकेन्द्रिय जीवों की हत्या की जाती है । 7 'धूप जगाना, दीप जलाना, इन कार्यों में एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है । सचित्त जल का प्रयोग करने पर जलकायिक जीवों की हिंसा होती है। टल्ली बजाने से वायुकायिक जीव मरते हैं । इस प्रकार द्रव्य पूजा में जल - कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक तथा वनस्पति कायिक इन सभी जीवों का संहार होता है । इस के अलावा दीपशिखा पर ग्रनेकों त्रसजीवों का भी जीवन जल जाता है । त्रस और स्थावर जीवों की विनाशिका द्रव्यपूजा के दोषों की ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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