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________________ ८४४ . सोलहवां अध्याय ~~~~mmmmmmm. विकारों को समाप्त करने का महामार्ग दिखलाती है। इस यात्मा :: को महात्मा, और धीरे-धीरे महात्मा को परमात्मा के रूप में परिवर्तित कर देती है। इसी लिए इसके आश्रयण की ओर स्थानकवासी परम्परा का झकाव है। . . . . . . . ....:.; . हज़ारों नहीं लाखों वर्षों से संसार में अहिंसा का पावन', स्वर गूजता रहा है। भगवान महावीर ने जव उस स्वर से अपना . स्वर मिलाया तो उन्हों ने कहा था-: :: :: : :...:. . : सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जावियं न मरिज्जियं । तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गन्था. वज्जयन्ति णं ॥ ...... अर्थात् सव जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। .. . इसी लिए निर्ग्रन्थ साधक सदा-घोर प्राणिवध से दूर रहते हैं। ... .. ........... कितना विराट और सात्त्विक सत्य है यह ? संसार के प्रत्येक ... अध्यात्म महापुरुष ने इस सत्य को अपने स्वर के साथ मिला कर - गाया है, और महामंत्र मान कर इसकी सब ने आराधना की है। .. . द्रव्यपूजा के अन्य दोषों की चर्चा वाद में करेंगे, सर्व-प्रथम इस में ... ...सव से पहला दोष यही है कि जिस सत्य के गीत संसार अनादिकाल :: . से गाता पाया है और. जिस सत्य को महामंत्र वना कर भगवान ... महावीर ने अपनी अध्यात्म साधना का श्री गणेश किया था उस : सत्य की आत्मा पर यह द्रव्यपूजा प्रहार करती है। यह इस द्रव्य-.. पूजा में कितना बड़ा दोष है ? - द्रव्यपूजा की साधन-सामग्री में चन्दन, धूप आदि के साथ-.. .. साथ पुष्प भी हैं । द्रव्य पूजा करते समय पूजक चन्दन घिसाता है, . . उसका तिलक लगाता है, धूप जलाता है, इस के साथ-साथ वह .. अपने पूज्य को पुष्प भी अर्पित करता है। समझ में नहीं आता, : जिन वीतरागी महापुरुपों ने संसार को अहिंसा का सन्देश दिया . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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