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________________ ८२४ प्रश्नों के उत्तर mmmm mmmmmmmmmmn rammmmmim यही पाठवां दिन महापर्व सम्वत्सरी के नाम से जैन संसार में प्रसिद्ध है । वैसे तो सप्ताह भर ही कर्मनाश के निमित्त आध्यात्मिक. साधना में प्रयास चलता है, किन्तु आठवें दिन साधक कर्मों का । नाश करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देता है। इस दिन वह पौषध करके २४ घण्टे प्रात्मदोषों का अन्वेषण, निरीक्षण और तन्निमित्तक क्षमायाचन के द्वारा आत्मा को कर्ममल से रहित करने ..." का सर्वतोमुखी यत्न करता है। यदि दोनों पर्यों की मूलभावना को देखा जाए तो इन में कोई विशेष विभिन्नता दृष्टिगोचर. नहीं.. होती। दोनों का एक ही लक्ष्य है, एक ही ध्येयपूर्ति के दोनों . साधक हैं, संभव है इसी लिए इन आठ दिनों को अष्टान्हिक पर्व कहा जाता है। ... . अष्टान्हिक पर्व के पुण्य दिनों में प्रायः सभी स्त्री पुरुष अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार तप देव की उपासना करते हैं । कोई । एक उपवास.. करता है, कोई दो इस तरह कोई लगातार पाठ उपवास भी करता है । कोई आठों दिन एक वार भोजन करते हैं, अर्थात् एकाशन तप करते हैं, कुछ लोग स्तोत्र पढ़ते हैं, मंगल पाठ करते हैं, महामंत्र नवकार का अखण्ड जाप करते हैं। इन दिनों व्याख्यानों में श्री अन्तकृद्दशांग या कल्पसूत्र सुनाया जाता है। प्रभावना के लिए मोदक भी वांटे जाते हैं। : अप्टान्हिक पर्व श्वेताम्बर परम्परा में भाद्रपद कृष्णा १३ से . लेकर भाद्रपद शुक्ला ५ तक मनाया जाता है। दिगम्बर सम्प्रदाय. . में यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला ५ से चतुर्दशी तक मनाया जाता है और उसके यहां यह पर्व दशलक्षण नाम से कहा जाता है। . इन दस दिनों में इसके यहां तत्त्वार्थसूत्र के १० अध्याय और धर्म के . . . दल. लक्षणों पर व्याख्यान सुनाए जाते हैं।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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