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________________ . . पन्द्रहवां अध्याय ८२३ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~..rrrrrrrrrrrrrrr-~~~~~~~~~.. जाए और विशेष रूप से आत्मनिरीक्षण करके प्रात्मदोषों का आमूलचूल विनाश किया जाए । पर्युषण के पीछे भी यही भावना है। यह पर्व एक सप्ताह में सम्पन्न होता है। आजकल जैसे खादी- ... सप्ताह, गीता-सप्ताह आदि सप्ताह मनाए जाते हैं वैसे ही यह · . पर्व एक आध्यात्मिक सप्ताह है। वर्ष भर में यदि मनुष्य अपने जीवन की जांच पड़ताल न कर सका हो, आत्मचिन्तन तथा आत्मनिरीक्षण का उसे अवसर न मिल सका हो तो कम से कम इस सप्ताह में तो वह अपने जीवन के बही-खाते को अवश्य देख ले, और उस में जो हेराफेरी या गड़बड़ चल रहो हो उसे दूर करने का : यत्न कर ले, ताकि भविष्य में जीवन की पुस्तक साफ सुथरी और । प्रामाणिक बन सके। महापर्व पर्युषण का उदय भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी में होता है और भाद्रपद शुक्ला में उसका अन्तर्धान हो जाता है। कृष्ण पक्ष से चालू हो कर शुक्लपक्ष में समाप्त होने का अभिप्राय इतना ही है कि यह मानव को अन्धकार से निकाल कर प्रकाश में आने की प्रेरणा देता है । मानव जीवन की अज्ञानता और उसकी हे, उपादेय के .. प्रति विवेकशून्यता ही उस का अधिकार है । इस अधिकार को हटा कर पर्युषण पर्व मानव हृदय में अहिंसा, सत्य और समदर्शिता के दीपक जलाता है। ताकि आध्यात्मिकता की दिव्य ज्योति से ज्योतित... हुआ मानवी जीवन अपने भविष्य को समुज्ज्वल बना सके, और अपने अन्दर सोए प्रभुत्व के देवता को जगाने की क्षमता प्राप्त । . . कर सके। पर्यु पण पर्व एक आध्यात्मिक यज्ञ है, इस में हिंसा, असत्य, .. . चौर्य, मैथुन आदि आत्मविकारों की आहुति डालनी पड़ती है। .... आहुति डालने की यह प्रक्रिया सप्ताह भर चलती रहती है और पाठवें दिन इस यज्ञ में विकारों की पूर्णाहुति डाल दी जाती है।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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