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________________ ८२० प्रश्नों का उत्तर ~~~-~-~- ........... .... श्रेयांस के हाथ से उन्हें ईख के रस से पारणा करना पड़ा था,.. यही इस तृतीया का इतिहास है, नीर वहीं उसका महत्त्व है, जिस के .. कारण वह सदा के लिए अक्षय यन गई। वैशाख शुक्ला तृतीया को दान-तृतीया भी कहा जा सकता .. है, किन्तु उसे दानतृतीया न कह करके जो अक्षयतृतीया कहा गया . है, इसके पीछे कई एक रहस्यमयी बातें हैं। प्रथम तो युगादि-देव भगवान ऋपभदेव के पाणिपात्र में जितना इक्षुरस डाला गया था, ' उसमें से एक कण भी नीचे नहीं गिरने पाया, एक वूद भी क्षय नहीं होने पाई। इस चमत्कारपूर्ण अक्षयविधि के सर्व-प्रथम दर्शन भगवान ऋपभदेव के पारणे में हुए और यह अक्षय विधि भगवान के शरीर श्रेयांस कुमार भगवान ऋषभदेव का प्रपौत्र. बाहुबलि का पौत्र और ... सोम-प्रम राजा का पुत्र था। एक दिन वह महल की खिड़की में बैठा था, उसने बाहर भगवान ऋषभदेव को देखा, वे एक वर्ष की कठोर तपस्या का पारणा लेने के लिए मिक्षार्थ घूम रहे थे । शरीर एक दम सूख गया था। उस समय के भोले लोग भगवान को अपना राजा समझ कर अपने घर निमंत्रित कर रहे थे। कोई उन्हें भिक्षा में धन देना चाहता था, कोई कन्या । इस बात का किसी को ज्ञान .... न था कि भगवान इन सब चीजों को त्याग चुके हैं। ये वस्तुएं उनके लिए व्यर्थ हैं। उन्हें तो लम्बे उपवास का पारणा करने के लिए शुद्ध आहार की आवश्यकता है.। श्रेयांस इस दृश्य को देखता चला गया, गंभीर विचारणा के अनन्तर उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। इस ज्ञान में मनुष्य अपने पिछले जन्नों को जान लेता है । श्रेयांस ने इस ज्ञान के प्रभाव से अपने अतीत के पाठ भर जान लिए थे, इस कारण इसे दान देने की विधि का बोध हो गया । श्रेयांस तत्काल उठा और उसने भगवान का गन्ने के रस से पारणा कराया। तीर्थ करों के पात्र उनके हाथ ही हुआ करते है, काष्ठ आदि का अन्य कोई पात्र वे अपने पास नहीं रखते। . -
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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