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________________ प्रश्नों के उत्तर .... ३९० और बचाने से पुण्य होता है, यह कहने की क्या आवश्यकता उत्तर- यह सत्य है कि आत्मा अमर है, वह कभी मरती नहीं हैं, और मारी जा भी नहीं सकती है, परन्तु शरीर में कायम रहने के . . लिए और अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए आत्मा को जो शक्तियां प्राप्त हो रही हैं, उन शक्तियों को आत्मा से पृथक कर देना, उनको लूट लेना ही आत्मा की मृत्यु है; आत्मा को मार देना है । आत्मा की शक्तियों को आत्मा से जो पृथक् करता है, वह पाप : का उपार्जन करता है। अतः प्रात्मशक्तियों का कभी घात नहीं .. करना चाहिए । जनदर्शन में आत्मा की शक्तियों को प्राण के नाम से . व्यवहृत किया जाता है । सभी संसारी आत्माएं प्राणों के अधीन हैं। .. प्राणों की सहायता से ही आत्मा सुख-दुःख अनुभव करती है। आत्मा. . चेतन है, और प्राण जड़ हैं। प्रात्मा अविनाशी है और प्राण नाशवान .. हैं। तथापि जिस प्रकार धनी के धन का अपहरण कर लेने पर धनो . को दुःख होता है, ऐसे ही प्राणों का नाश होने पर आत्मा को कष्ट . . होता है, आत्मा दुःखानुभव करती है। किसी को कष्ट देना या दुःख. .. देना पाप है, यह एक जघन्य प्रवृत्ति है । . ... ..... जैनदर्शन ने प्राण १० माने हैं- श्रोत्र, नेत्र, नासिका, रसना,.. ... स्पर्शन, मन, वाणी; शरीर,श्वासोच्छ्वास और आयु । कान को वह . शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य शब्द सुनता है, उसको श्रोत्र कहते हैं। पांच इन्द्रियों में श्रोत्र अंतिम इन्द्रिय मानी जाती है। श्रोत्रन्द्रिय का जीवन .. में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है । श्रोत्र द्वारा मनुष्य धर्मशास्त्र सुनता है, हिताहित की बातें सुनता है । विद्यार्थी अध्यापक की बातें सुन कर ही . धीरे-धीरे विद्वान वनता है । विद्वान बन कर वह संसार को ज्ञान देता
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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