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________________ . . .. दशम अध्याय Animmmmmmmmmmmmmmmm की संख्या पर ही निर्धारित नहीं, परन्तु भावों पर निर्धारित है। यह हम देख चुके हैं कि जहां परिणामों में कषायों की अधिक तीव्रता होती : है, वहां पापकर्म का बन्ध भी प्रगाढ़ होता है। इस दृष्टि को सामने - रख कर जैनागमों में कियाए वन्ध' नहीं परन्तु 'परिणामे बन्ध' कहा है। अर्थात् कर्म का वन्ध जो होता है, वह केवल क्रिया से नहीं, बल्कि - राग-द्वेष एवं कषाय युक्त परिणामों से होता है । अतः पाप कर्म के " बन्ध में जीवों की संख्या की अपेक्षा कलायों की तीव्रता का अधिक. - - मूल्य है। जैसे एक तरफ करोड़. दमडिएं हैं और दूसरी तरफ एक __ हीरा है । संख्या की दृष्टि से दमड़िएं अधिक हैं परन्तु कीमत की दृष्टि ...से वे सब हीरे के सामने नगण्य हैं, कोई मूल्य नहीं रखती। इसी... ... तरह अन्न के हजारों दाने हैं, परन्तु उसका उपभागः करते समय मन ... में कषायों की तीव्रता नहीं रहतो और पशु-पक्षी की हिंसा के समय परिणामों में अधिक कलुषता एवं क्रूरता दिखाई देती है, अतः अन्न . . की अपेक्षा पशु-पक्षी की हिंसा में महापाप है और यही कारण है कि . मांसाहार महारभ एवं महाहिंसा का जन्य होने से महापाप कर्म के . बन्ध का कारण एव नरक का द्वार कहा है । परन्तु शाकाहार में ऐसी . बात नहीं । अतः मांसाहार किसी भी.अवस्था में विवेकशील इन्सान. .. के लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है । यह हर हालत में मानव की मा नवता एवं सद्बुद्धि का नाशक है और सद्गति का अवरोधक है। इस.: लिए मनुष्य को सदा मांसाहार से दूर रहना चाहिए। प्रश्न- श्रात्मा अजर है, अमर है, यह तो कभी मरती नहीं है। फिर किसी के मरने या मारने का क्या प्रश्न हो सकता है. ? आत्मा को अमर मान लेने पर किसी को मारने से पाप ' ' . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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