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________________ : चतुर्दश अध्याय ७६.३ रण करते हुए । यदि साधु के सिवाय किसी अन्य को खिलाना या. पाप क्यों करता ? आधार बनने की 1 किसी को कुछ देना पाप होता तो आनन्द यह अधिक क्या उसने अपने पुत्र को भी सव का शिक्षा दी। दूसरे की सहायता करने, दूसरे का दुःख दूर करने तथा दूसरे के प्रति उदारता-पूर्वक व्यवहार रखने की आदर्श प्रेरणा प्रदान की । यदि वह सब विचार पापमय होता तो उसे धर्म- जागरणा का रूप शास्त्रकार कभी न देते । प्रत. तेरहपन्थ की 'साधु के सिवाय दूसरे को दान देना पाप है' यह मान्यता किसी भी तरह ठीक नहीं ठहरती है । - • राय - प्रसेणी सूत्र में राजा प्रदेशी का वर्णन आता है । उसने अपने राज्य की आय के चारा भाग किए थे । उन में से एक भाग से उसने दान - शाला खुलवाकर, उस में बहुत से नौकर रखकर, ..बहुत सा खाद्य तथा पेय पदार्थ बनवाकर साधु, ब्राह्मण, भिक्षु प्रौर पथिकों को खिलाने-पिलाने के लिए लगाया था । यदि साधु के सिवाय अन्य किसी को दान देने में पाप होता, तो राजा प्रदेशी ऐसा कार्य क्यों करता ? इस कार्य की अपने गुरुदेव श्री केशी श्रमरण के सामने प्रतिज्ञा क्यों करता ? इससे स्पष्ट है कि दीन, दुःखी, भिखारी आदि को दान देना पाप नहीं है । राजा प्रदेशी के सम्वन्ध में तेरहपन्थी लोग यह युक्ति देते हैं कि राजा प्रदेशी की दानशाला खोलने विषयक प्रतिज्ञा सुनकर भी केशी श्रमण मौन ही रहे । केशी मरण कुछ बोले नहीं । यदि यह कार्य पुण्यमय होता तो केशी श्रमरण उसकी अवश्यं प्रशंसा करते । उन का मौन रहना ही इस बात का प्रमाण है कि दानशाला खोलना पापमय कार्य था । इस सम्बन्ध में हमारा कहना है किं यदि केशी श्रमण का मौन रहना ही दानशाला की सावद्यता का प्रमाण है तो हम पूछते हैं कि जिस "
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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