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________________ .: चतुर्दश अध्याय को एक पुत्री भी हुई थी,किन्तु दिगम्बर परम्परा भगवान महावीर को अविवाहित मानती है । उस का विश्वास है कि महावीर अ खण्ड ब्रह्मचारी थे, वैवाहिक जीवन को उन्होंने कभी अंगीकार नहीं .. किया था। .. ... ..: तीर्थकर के कन्धे पर देवदूष्य वस्त्र "... स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि भगवान महावीर . . जब दीक्षित हुए थे, साधु बने थे, तब सौधर्मेन्द्र शकेन्द महाराज ने भगवान को एक वस्त्र अर्पित किया था, जो प्रभु ने अपने कन्धे पर डाल लिया था, और जो जैन-साहित्य में देवदूष्य के नाम से प्रख्यात है। यह देवदूष्य भगवान के पास १३ महीने रहा था, बाद में वह उन के पास नहीं रहा, किन्तु दिगम्बर परम्परा ऐसा वि... श्वास नहीं रखती। उसका कहना है कि भगवान सर्वथा दिगम्बर थे, नग्न थे, दिशाएं ही उनके वस्त्र थे। एक बार वस्त्र और भूष गों को उतार कर इन्होंने कभी किसी वस्त्र को धारण नहीं किया। . इनका यह नग्नत्व आजीवन रहा।.. .. . मरुदेवी माता की हाथी पर मक्ति. . ... एक हजार वर्ष की निरन्तर कठोर साधना के अनन्तर जव भगवान आदि नाथ को केवल-ज्ञान की प्राप्ति हुई . तो उसी समय भगवान के पुत्र भरत महाराज की. आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई । पुण्योत्कर्ष के प्रताप से भरत को हर्षमहोत्सव के एक साथ दो पुण्य अवसर प्राप्त हो गए । प्रश्न उपस्थित हुआ कि पहले . किस उत्सव को मनाया जाए ? भरत ने सोचा-चक्ररत्न तो केवल इस भौतिक संसार के लाभ की वस्तु है, किन्तु प्रभु के केवल-ज्ञान . महोत्सव लोक और परलोक दोनों के लिए हितकारी है । अतः सर्व
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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