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________________ प्रश्नों के उत्तर नकवासी परम्परा का कहना है कि केवली भगवान ने भले ही घातिक कर्मों को क्षय कर दिया है पर अभी तक उनके वेदनीय, नाम, गोत्र और प्रायुप ये चार अघातिक कर्म अवशिष्ट होते हैं, वेदनीय कर्मजन्य सुख-दुःख का उनको भी उपभोग करना पड़ता है। यदि वेदनीय कर्म का फल ही न हो तो फिर उसकी अवस्थिति का.. अर्थ ही क्या है ? अतः वेदनीय कर्मजन्य सुख, दुःख का अनुभव तो तीर्थकरत्व, सर्वज्ञत्व और सर्वदशित्व प्राप्त कर लेने पर भी प्रात्मा: .. को करना ही होता है। ... तीर्थंकर भगवान का यह अतिशय होता है कि वे जहां वि- .. राजते हैं, उस स्थान के चारों ओर सी योजन के अन्दर किसी भी प्रकार का वैरभाव, मरी आदि रोग, और दुर्भिक्ष आदि किसी प्र- ।। कार का उपद्रव नहीं होने पाता, किन्तु श्रमण भगवान महावीर स्वामी को केवली अवस्था में भी यह जो गोशलक-निस्सारित . तेजोलेश्या द्वारा उपसर्ग सहन करना पड़ा, यह एक आश्चर्य की बात है। तीर्थंकर भगवान तो देव, मनुष्य, तिर्यञ्च सव के लिए · सत्कार के पात्र हैं, उपसर्ग के पात्र नहीं हैं। तथापि अनन्त काल के अनन्तर कभी ऐसी दुःखद घटना उनके जीवन में भी संघटित हो जाती है। यही दशविध पाश्चर्यों में एक प्रारचर्य का अपना स्व रूप है। इसीलिए स्थानकवासी परम्परा भगवान महावीर के इस २. उपसर्ग को एक आश्चर्य के रूप में देखती है। ..: . . . महावीर का विवाह (कन्याजन्म) ... .. .... स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि भगवान महावीर ... विवाहित थे, राजकुमारावस्था में इन का राजकुमारी यशोधा के .... साथ विवाह सम्पन्न हुश्रा था और उस से उन के प्रियदर्शना नाम . . . ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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