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________________ ७१२ प्रश्नों के उत्तर म्परा को जिनकल्पी परम्परा का ध्वसांवशेप नहीं कहा जा सकता। इस के अतिरिक्त, भगवान महावीर ने जिनकल्प का जो विधान किया है। उस का और आज की उपलब्ध दिगम्बर परम्परा के .. विधि-विधान में अत्यधिक अन्तर पाया जाता है, आचार-विचार-.. सम्बन्धी महान मतभेदं है। इसलिए भी उस जिनकल्पी परम्परा - का आज की दिगम्बर परम्परा के साथ कोई सम्बन्ध नहीं कहा जा .. सकता। . .. भगवान महावीर ने कल्पों का जो द्वैविध्य बतलाया है । वह . तो केवल साधक की साधनागत भिन्नता को लेकर ही बतलाया है, उस. में सैद्धान्तिक मतभेद को कोई स्थान नहीं है । एक. साधक : अत्यधिक कठोर साधना कर सकता है, नग्न रह सकता.. है, रोगी होने पर किसी भी प्रकार की औषधि का सेवन नहीं .. करता, शैत्य -- लगता है तो शरीर को संकुचित नहीं करता प्रत्युत.. उसे अधिक ... प्रसारित करता है,* लज्जा-परीषह पर सर्वथा विजय प्राप्त कर ... - लेता है । इस प्रकार की उच्चतम तथा कठोरतम संयम साधना की ... जिस में क्षमता हो, उस साधक के लिए जिनकल्प का विधान किया गया है, किन्तु जो साधक इस प्रकार की भोषण साधना नहीं कर..." . सकता, अपेक्षाकृत कुछ न्यून या सरल साधना के महापथ पर चल.. ... रहा है। उस के लिए स्थविरकल्प का निर्देश किया है। पर दोनों कल्पों की मौजूदगी में सैद्धान्तिक कोई भिन्नता नहीं है। दोनों ही .. . . .* नग्न होने पर व्यक्ति को लोगों से जो लज्जा की अनुभूति : : होती है, उस पर विजय प्राप्त कर लेना ही लज्जा-परीषह पर विजय प्राप्त करना होता है । ... ... ... .. ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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