SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - चतुर्दश अध्याय -~~~~~~~~~rrrrrr mmmmmmmmmmr. रख सकता है। अतः ये तीन उपकरण. माने जाते हैं। .. ..... ११-रजोहरण-पाट, शय्या आदि पोंछने के लिए ऊन आदि का बना हुआ उपकरण-विशेष । ... __.. १२-मुखवस्त्रिका-मुखनिःसृत वायुकाया की रक्षा के लिए मुख . पर बांधा जाने वाला वस्त्र । ... १३--मात्रक-लघुशंका आदि गिराने के काम में आने वाला पात्रविशेष । - १४.-चोल्लपढ़-गुप्त अंगों को ढकने के लिए धोती के स्थान में वांधा जाने वाला कपड़ा। - जिनकल्प और स्थविरकल्प इन दोनों कल्पों की प्ररूपणा स्वयं भगवान महावीर ने की है। भगवान महावीर के युग में दोनों कल्पों के साधु पाए जाते थे, किन्तु भगवान महावीर के पौत्र शिष्य श्री जम्बू स्वामी के निर्वाण के अनन्तर जिनकल्प का व्यव- . च्छेद हो गया, उस की समाप्ति हो गई। केवल स्थविरकल्प शेष . रहा । अाजकल स्थविरकल्प ही चल रहा है । इसी कल्प के नेतृत्व में आज़ साधु-मुनिराज संयम के महापथ पर बढ़ते चले जा रहे हैं । ... प्रश्न-जिनकल्पी साधु नग्न रहता है, वह सर्वथा . त्यागी होता है, यह सत्य है. किन्तु आज की दिगम्बर सम्प्रदाय के साधु की भी ऐसी ही वेषभूषा होती है, वह. सदा नग्न ही रहता है । नग्न होने के कारण ही वह दिगम्बर कहलाता है। फिर कहीं दिगम्बर परम्परा जिनकल्पी परम्परा का ही ध्वंसावशेष तो नहीं? . . . . उत्तर--श्री' जम्बूस्वामी के निर्वाण के अनन्तर जिनकल्पी .. परम्परा का तो अभाव हो गया था, अतः आज की दिगम्बर पर
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy