SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्दश अध्याय दिया गया । जो बाद में उसी ब्राह्मण ने उठा लिया था । इस. तरह भगवान महावीर १३ मास तक वस्त्रधारी रहे । और उस के पश्चात् उन्होंने कोई वस्त्र नहीं रखा। वे सर्वथा नग्न ही रहते थे इस से स्पष्ट है कि भगवान सचेलक भी रहे और अचेलक भी । 1 इस के अतिरिक्त, स्थानकवासी परम्परा की ऐसी भी मान्यता हैं कि भगवान महावीर किसी को नग्न नज़र नहीं आते थे । उनके प्रतिशयविशेष के कारण वे सब को साधु-वेप में ही दृष्टिगोचर होते थे । मुख पर मुखवस्त्रिका, हाथ में रजोहरण तथा शरीर पर अन्य प्रावश्यक वस्त्रधारण किए हुए प्रतीत होते थे । जैसा कि आज एक स्थानकवासी साधु का वेष है, उसी वेष में प्रभुवीर के दर्शन होते थे। ऐसा विश्वास है, स्थानकवासी परम्परा का 2 भगवान महावीर ने दो तरह के कल्प माने हैं - जिनकल्प और और स्थविरकल्प | जिनकल्प को अचेलक - कल्प भी कहते हैं । तीर्थकर या जिनकल्पी साधुयों का वस्त्रों के प्रभाव के कारण अचेलक xतीर्थकर भगवान चर्मचक्षु वाले व्यक्तियों को नग्न नजर नहीं आते थे, और सदा साधुवेप में ही सब को दिखाई देते थे । यह कपोलकल्पित कल्पना नहीं है । इसके पीछे शास्त्रीय आधार भी है। समवायांग सूत्र के ३४ वें समवाय में लिखा है कि तीर्थंकर भगवान के ४ प्रतिशय [ श्रध्यात्म साधना द्वारा उत्पन्न महाशक्ति ] होते हैं उन में पांचवां श्रतिशय है--तीर्थकर भगवान का श्राहार और नीहार (शौच जाना) प्रच्छन्न रहता है, चर्मचक्षुवालों को दिखाई नहीं देता । जब भगवान आहार, नीहार करते हुए भी लोगों को उस रूप में दिखाई नहीं देते, तब उन का नग्न दृष्टिगोचर न होना कोई आश्चयजनक नहीं है ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy