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________________ प्रश्नों के उत्तर एक लेखक-मण्डल की भी स्थापना कर रखी थी। बहुत से लेखक रख कर ये प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथों की नक़लें करवाया करते थे, और समय मिलने पर स्वयं भी लिखा करते थे । ज्यों-ज्यों ये शास्त्रों.... की नक़लें करते और करवाते, तथा उन्हें पढ़ते त्यों-त्यों शास्त्रों की . रहस्यमयी बातों का तथा श्रमण भगवान महावीर के मंगलमय . उपदेशों का भी इन्हें वोध प्राप्त होने लगा। फिर क्या था ? इन के ज्ञान-नेत्र खुल गए । एक ओर उनके सामने शास्त्रीय मर्यादाएं ". थीं, दूसरो ओर तात्कालिक समाज का वातावरगा था। उन्होंने ... .देखा कि साधु-जीवन में साधुता का ह्रास हो रहा है, शिथिला चार पनप रहा हैं और अज्ञ लोग मन्दिरों में भगवान की प्रतिमा .. बना कर उस का पूजन करते हैं,उन पर संचित्त पुष्प और जल का , प्रक्षेप किया जा रहा है । इस तरह धर्म के नाम पर अधर्म का . . ...पोषण हो रहा है, वीतरागी भगवान को रागी का रूप दिया जा रहा है, हिंसा को अहिंसा समझा जा रहा है। ..... समाज में बढ़ती हुई शिथिलता और आगमों के अनुसार आचरण का अभाव लोकाशाहं को अखरने लगा। सब से अधिक खेद उन्हें जड़-पूजा की अशास्त्रीय मान्यता पर हुआ है। शास्त्रीय तथ्य उनके सामने थे। उन्होंने सोचा-भगवान महावीर ने आचा रांग, सूयगडांग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, भगवती सूत्र आदि. - आगमसाहित्य में कहीं पर भी साधु और श्रावक के लिए मूर्ति- . पूजा करने का विधान नहीं किया। और मूर्ति-पूजा करने से कुछ ... लाभ होता है ? इस सम्बन्ध में प्रागमों में कोई संकेत भी नहीं मिलता है। रागगृह, चम्पा, हस्तिनापुर, द्वारिका, श्रावस्ती,तुंगिया, अयोध्या, मथुरा आदि नगर तथा नगरियों का वर्णन शास्त्रों में आता है, उन में यक्ष और भूत के पूजन का वर्णन तो मिलता है
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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