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________________ चतुर्दश अध्याय ६७५ का पद नहीं दिया जा सकता । वस्तुतः अरिहन्त संघ व्यवस्था से . सर्वथा अलग-थलग रहा करते हैं। स्वयं भगवान महावीर भी संघव्यवस्था से अपना कोई सम्बन्ध नहीं रखते थे। उस समय गण का सारा उत्तरदायित्व गणधरों पर ही था, भगवान महावीर पर नहीं । महावीर स्वामी तो केवल संघ के संस्थापक थे तथा नियामक थे । व्यवस्थापक का रूप उन्होंने कभी नहीं लिया । ग्रस्तु, गौतम स्वामी के केवल - ज्ञानी हो जाने के कारण उन को याचा पद नहीं दिया गया । प्रत्युत भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर बनने का गौरव श्री सुधर्मा स्वामी को मिला । श्री सुवर्मा ने वारह वर्ष तक संघ की उचित व्यवस्था की । हर तरह से संघ का संरक्षरण, पोपण और संवर्धन किया । ग्राप के केवली वन जाने पर संघ-व्यवस्था का सारा उत्तरदायित्व आप के ही विनीत शिष्य श्री जम्बु स्वामी जी पर आ गया । २ - पूज्य श्री जम्बू स्वामी 1 श्री सुधर्मा स्वामी के केवल - ज्ञान प्राप्त कर लेने के अनन्तर श्री जम्बूस्वामी को ग्राचार्य पद दिया गया: । जम्बू एक नगरसेठ के पुत्र थे, बनी होने पर भी सदा वैराग्य सरोवर में दुबकियां लगाते रहते थे । वैराग्य का रंग इतना अधिक चढ़ चुका था कि विवाह के अगले दिन ही ग्राठ पत्नियों को छोड़कर साधु बन गए थे । यही नहीं, इन के माता, पिता, इन की विवाहित आठों स्त्रियां, इन स्त्रियों के माता-पिता और घर में चोरी करने ग्राए: प्रभवः यदि ५०० चोर, इस प्रकार कुल ५२६ व्यक्तियों ने इन के साथ धर्म अंगीकार करके जीवन का कल्याण किया था। श्री सुधर्माः स्वामी के निर्वारण के पश्चात् श्री जम्बू स्वामी: को केवल - ज्ञान प्राप्त हुआ । 1 1 ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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