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________________ ६७४ प्रश्नों के उत्तर .. उन्नति के क्रमिक विकास के अनुसार जीवन को पांच भागों में बाँट दिया गया है। पहला साधु, दूसरा उपाध्याय, तीसरा आचार्य, चौथा अरिहन्त और पांचवां सिद्ध । इन में .प्राचार्य का तीसरा स्थान है, और अरिहन्त का चौथा । अरिहन्त का पर्यायवाची शब्द केवली है। केवली कहो या अरिहन्त एक ही बात है। शब्दभेद के अतिरिक्त अर्थ-भेद कुछ नहीं है. । .................... .. प्राचार्य का अर्थ है--जो प्राचार का, संयम का स्वयं पालन करता है, और संघ का नेतृत्व करता हुयी दूसरों द्वारा उस का . पालन करवाता है। प्राचार्य शब्द की इस व्याख्या से स्पष्ट है कि प्राचार्य अभी साधक है, साधना उसके जीवन का ध्येय हैं, जव कि अरिहन्त सिद्ध हो चुके हैं। काम क्रोध, मोह, लोभ आदि जीवन-शत्रुओं पर उहोंने सर्वथा विजय प्राप्त करली है, अहिंसा और शान्ति के वे असीम सागर वन गए हैं। इससे स्पष्ट है कि .. अरिहन्त का स्थान प्राचार्य से वहुत ऊंचा है, उन के प्रात्म-गत . ... 'विकास में महान अन्तर हैं। अतः अंरिहन्त . प्राचार्य का स्थान नहीं ले सकता और प्राचार्य अरिहन्त के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसलिए श्री गौतम स्वामी को भगवान महावीर के अन- . न्तर आचार्य पद न देकर श्री सुधर्मा स्वामी को दिया था। गौतम ।। स्वामी केवल ज्ञान पा कर अरिहन्त वन चुके थे। अत: वे प्राचार्य के स्थान पर जो कि अरिहन्त ही अपेक्षा. बहुत छोटा स्थान है, . बैठ भी नहीं सकते थे । - इस के अतिरिक्त,यदि अरिहन्त को प्राचार्य पद दे दिया जाए . तोग्राचार्य पद समाप्त हो जाएगा। फिर तो पंच परमेष्ठी की । . वजाय, अरिहन्त, सिद्ध, उपाध्याय और साधु ये चार परमेष्ठी ही रह जाएंगे । पांच पदों की सुरक्षा के लिए भी अरिहन्त को प्राचार्य
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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