SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ હૃદ प्रश्नों के उत्तर " छूट जाने पर प्रकट होती है । जैसी सर्वथा मल के निकाल देने पर जल स्वच्छ हो जाता है, ऐसे ही क्षायिक भावों में आत्मा सर्वथा स्वच्छ हो जाती है । क्षय और उपशम दोनों से पैदा होने वाला भाव: क्षायोपशमिक कहलाता है । क्षयोपशम भी एक प्रकार की ग्रात्मिक शुद्धि ही है । यह कर्म के एक ग्रंश का उदय सर्वथा रुक जाने पर और दूसरे ग्रंश का प्रदेशोदय द्वारा क्षय होते रहने पर प्रकट होती है। यह विशुद्धि वैसी ही मिश्रित है, जैसे धोने से मादक शक्ति के कुछ क्षीण हो जाने और कुछ रह जाने पर कोदों (सांवाँकी जाति का एक मोटा अन्त) की शुद्धि होती है । उदय से होने वाले भाव को प्रदयिक कहते हैं । उदय एक प्रकार का ग्रात्मिक कालुष्य-मालिन्य है जो कर्म के विपाकानुभव से वैसे हो पैदा होता है, जैसे मल के मिल जाने पर जल में मालिन्य प्रकट हो जाता है । पारिणामिक भाव द्रव्य का वह परिणाम है - जो सिर्फ द्रव्य के अस्तित्व से आप ही ग्राप प्रकट हुआ करता है । ग्रर्थात् किसी भी द्रव्य का स्वाभाविक स्वरूप - परिणमन ही पारिणामिक भाव कहलाता है । जीवत्व, चैतन्य, भव्यत्व - मुक्ति की योग्यता, भव्यत्व- मुक्ति की अयोग्यता ये तीनों भाव पारिणामिक हैं, स्वाभाविक हैं। ये तीनों न कर्मों के उदय से, न उपशम से न क्षय से श्रीर न क्षयोपशम से पैदा होते हैं, किन्तु अनादिसिद्धः श्रात्म-द्रव्य के · " + 4 अस्तित्व से ही सिद्ध हैं, इसी से वे पारिणामिक हैं । - इन पांच भावस्थानों में क्षायिक भाव ही मुख्य भावस्थान है । यह भावस्थान कर्म सम्बन्ध के सर्वथा क्षय हो जाने के अनन्तर ही * नीरस किए हुए कर्म - दलिकों का वेदन प्रदेशोदय कहलाता है । रसविशिष्ट दलिकों का विपाकवेदन ही विपाकोदय होता है।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy