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________________ S स्थानकवासी और अन्य जैन संप्रदाए चतुर्दश अध्याय . - . प्रश्न-स्थानकवासी शब्द का अर्थ क्या है ? उत्तर-व्याकरण की दृष्टि से 'स्था'. धातु से 'अनट्' प्रत्यय हो । कर स्थान शब्द बनता है । फिर स्वार्थ में 'क' प्रत्यय कर लेने पर स्थानक रूप हो जाता है । वास शब्द से शीलार्थ में "णित्" प्रत्यय · करके "वासी'. शब्द वनता है । स्थानक और वासी दोनों शब्दों .. को मिलाकर 'स्थानकवासी' शब्द सिद्ध हो जाता है। स्थान का - अर्थ है---ठहरने की जगह और वासी शब्द "निवास करने वाला" इस अर्थ का परिचायक है । स्थानक में निवास करने वाला व्यक्तिर - स्थानकवासी कहलाता है। . . स्थानक द्रव्य और भाव इन भेदों से दो प्रकार का होता है। द्रव्यस्थानक शब्द अमुक प्रकार का क्षेत्र, भूमि या निवास करने की 'जगह आदि अर्थों का बोधक है. । स्थानक शब्द द्रव्य दृष्टि से सामान्यतया इन्हीं अर्थों में प्रयुक्त होता है, किन्तु जैन परम्परा में - यह शब्द एक विशेष अर्थ में रूढ हो गया है। स्थानक जैन-जगत . का अपना एक पारिभाषिक शब्द बन गया है और उस का प्रयोग .. minin xस्थीयते अस्मिन्निति स्थानम्, स्थानमेवेति स्थानकम्, स्थानके वसति, तच्छील इति स्थानकवासी।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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