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________________ . त्रयोदश अध्याय । ५३ .. - सन् १६५० में भूमि खोदते समय राक्षसी क़द के मनुष्य का अस्थिपंजर भूमि से निकला था। उस में जवाड़े की अस्थि आज के मनुष्य के पांव जितनी लम्बी थी, उस की खोपड़ी इतनी बड़ी .. थी कि उसमें २८ सेर पक्के गेहूं समा जाते थे, और दांत का वज़न पौन आउंस (कुछ कम दो तोले)प्रमाण का था। प्रोफेसरंथीयोडोर .. कुक" आपने वनाए "भूस्तर विद्या" के ग्रंथ में लिखते हैं कि पहले समय में उडते गिरोली (छिपकली, किरली) जाति के प्राणी इतने वड़े होते थे कि उन की पांख २७ फुट लम्बी होती थी। जव प्राचीन काल में इतने विशाल-काय प्राणी मिलते थे तो मनुष्यों की अवगाहना (शरीर-सम्बन्धी लम्बाई.चौड़ाई) बहुत बड़ी हो, इस में आश्चर्य जैसी क्या वात है ? इस के अतिरिक्त वैदिक ग्रंथ महा-भारत के १९वें अध्याय में राहु का सर पर्वत के शिखर जितना बड़ा लिखा है। इसी ग्रन्थ के २६वें अध्याय में ६ योजन - ऊंचा और बारह योजन लम्बा हाथी लिखा है । तथा तीन योजन ऊंचा और दश योजन के घेरे वाला कुर्मा-कछुया वतलाया है। इन सव' प्रमारणों से यह नितान्त स्पष्ट हो जाता है, कि प्राचीन- . काल में प्राणियों की शारीरिक ऊंचाई बड़ी विशाल होती थी। ... मनुष्य का यह स्वभाव रहा है कि वह वर्तमान को देखकर ही . प्रायः चलता है । इसीलिए उसे अतीत काल की बातें असंगत और असंभव प्रतीत होती हैं । पर वस्तुस्थिति ऐसी नहीं होती। सुनते हैं कि श्री हरदयाल जी एम०ए० हजारों पृष्ठों की पुस्तक को एक बार पढ़ लेने पर कण्ठस्थ कर लेते थे, और उन्हें उस पुस्तक का इतना. अभ्यास हो जाता था कि उस पुस्तक को उन से इति से अथ की .. ओर भी सुनना चाहें तो वे ऐसे सुना सकते थे, जैसे कोई पुस्तक पढ़ कर सुना रहा हो। यह वात सर्वथा सत्य है, तथापि सौ वर्षों
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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