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________________ त्रयोदश अध्याय ६५१. है, परन्तु होतो वह सर्वथा सत्य है । .. . आजकल प्रायः मनुष्यों का क़द ४-५ फुट ऊंचा होता है। हमारी आंखों को इसी क़द के देखने का अभ्यास पड़ गया है। हमारी अांखें आज इतनी अभ्यस्त हो गई हैं कि यदि सात-पाठ फुट का कोई आदमी नज़र आ जाए तो हमें महान आश्चर्य होता है और हम उसे पुनः पुनः देखते हैं । जव व्यक्ति को सामने देखकर भी हमें आश्चर्य होता है, तव जिस शरीर-गत ऊंचाई का हमने कभी साक्षात्कार नहीं किया, उसे सुनकर तो हमारा विस्मित होना स्वाभाविक ही है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारे उस आश्चर्य के पीछे सत्यता होती है। क्योंकि अद्भुत और अश्रुत पूर्व पदार्थ को सुन या देखकर विस्मित होना मनुष्य का स्वभाव वन गया है। उसी स्वभाव के अनुसार आज मनुष्य तीथंकरों की शरीरगत विशाल ऊंचाई को सुनकर विस्मित हो उठता है । तीर्थंकरों की शरीरगत ऊंचाई की सत्यता में सव से बड़ा प्रमारण यही दिया जा सकता है कि सौ वर्ष पहले शरीर की जो ऊंचाई पाई जाती थी वह आज नहीं है। समय के प्रभाव से शरीरगत ऊंचाई की क्रमशः हीनता ही इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन समय में शारीरिक ऊंचाई वहुत अधिक होती थी। इस के अतिरिक्त आज सामान्य.. रूप से शरीर का क़द ४ या ५ फुट ऊंचा. . माना जाता है, परन्तु आज भी इस से दूने ऊंचे क़द वाले मनुष्य मिल जाते हैं.। वम्बई देवल सर्कस में ६ फुट ऊंचा.एक आदमी काम करता था। जव आजकल ही दूने क़द वाले मनुष्य मिल जाते हैं, तब फिर प्राचीन समय में बहुत ऊंचे शरीर वाले मनुष्यों का होना क्यों असंगतं और अंसंभव है ? १८ सितम्बर सन १६६२ के गुजरात ....
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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