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________________ ५८० प्रश्नों के उत्तर वायु-काय के जीवों तथा वायु-मण्डल में स्थित अन्य जीवों की हिंसा होनी निश्चित है । अतः जब हम मुख पर मुखवस्त्रिका बांधे रखते हैं तो बोलते समय जो वायु मुख से बाहिर निकलेगी वह उक्त वस्त्र से टकरा कर ही बाहर आएगी, इसलिए बाहर आते-आते उसकी शक्ति क्षीण हो जाएगी और फिर वह जीवों को हानि नहीं पहुँचा सकेगी । अतः अहिंसा के परिपालक मुनि के लिए मुखवस्त्रिका बान्धना आवश्यक है। . . प्रश्न-आज के ऐटम और राकेट के युग में इतनी सूक्ष्म अहिंसा की क्या आवश्यकता है ? जब कि मानव चन्द्र-लोक की ओर बढ़ रहा है । स्वर्ग और धरती को एक बनाने का स्वप्न ले रहा हैं । और जैन साधु अभी भी मुखवस्त्रिका के पीछे. पड़ा हुआ है ? ...... .. .......... .... उत्तर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का महत्त्व आकाश और पाताल को नापने में नहीं, बल्कि प्रत्येक प्राणी की भलाई एवं रक्षा करने में रहा है। यह सत्य है कि सर्वज्ञों ने दुनिया के एक-एक ... अणु को देखा है, परखा है, चप्पे-चप्पे का विवेचन किया है, पर . उन्होंने यह सारा कार्य जोवों की सुरक्षा को सामने रखकर किया · है। स्वर्ग और नरक को नापने का उतना मूल्य नहीं है, जितना. कि. एक जीव को बचाने का है। यही कारण है कि तीर्थंकरों का: उपदेश नरक-स्वर्ग के नाप-तौल के - उद्देश्य से नहीं बल्कि प्राणी जगत की रक्षा रूप दया की दृष्टि से होता था* । उनका जीवन : विश्व-हित के लिए था । अतः मुखवस्त्रिका का विधान भी उसी. ....... *"सव्व-जग-जीव-रक्खण-दयट्ठयाए भगवया पावयणं सुकहियं”. .. ... ... . . . . . . . . . . -प्रश्न व्याकरण सूत्रः.......
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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