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________________ man - - ५७२ प्रश्नों के उत्तर आचारांग सूत्र में २१ प्रकार का धोवन पानी लेने का विधान है। और वहां यह भी उल्लेख किया गया है कि इस तरह का और भी. धोवन पानी लिया जा सकता है, जिसका वर्ण, गंध, रस और . स्पर्श वदल गया हो। इसके अतिरिक्त मूर्तिपूजक संप्रदाय में भी त्रिफले, लवंग आदि का पानी लेने की परंपरा है । वह भी एक तरह का धोवन ही है, अतः धोवन पानी का निषेध करना, शास्त्र के विरुद्ध है, ऐसा स्पष्ट कहा जा सकता है.। : .. भारत के अधिकांश प्रान्तों में रात के वासी बर्तन मांजने का तथा मांजने के बाद उन्हें धोकर रखने का रिवाज है । वे बर्तन शुद्ध होते हैं और उन्हीं के धोए हुए पानी को रखने की परंपरा है। वे बर्तन शुद्ध होते हैं, इसलिए उस पानी को झूठा नहीं कहा जा सकता । यदि उसे झूठा मान लिया जाए तो फिर उन बर्तनों को भी झूठा मानना होगा, जो उसमें धोएं गए हैं। जब वे बर्तन झूठे नहीं है, तब वह पानी कैसे झूठा हो सकता है ? नवपद जी ___ के दिनों में मूर्तियों को दूध एवं पानी से धोते हैं, वे सब मूर्तिय वासी होती हैं, उस पानी, का-मूर्तिपूजक बहन-भाई श्रद्धा से आच मन करते हैं। यदि रात वासी शुद्ध वर्तनों का धोया हुया पानी . झूठा होता है, तो उन मूर्तियों का धोया हुआ पानी भी झूठा होना चाहिए। परन्तु उसे झूठा नहीं मानते । और उसके अरिरिक्त केवल शुद्ध वर्तन ही नहीं बल्कि झूठे बर्तन भी राख से मांजने के .: वाद घोए जाते हैं, फिर भी वे झूठे नहीं रहते । क्योंकि सब लोग - उन्हें अपने खाने पीने के काम में लाते हैं । जब वें झूठे नहीं रहते .. तो जिस पानी में वे धोए गए हैं वह पानी झूठा कैसे हो सकता है. ? जब वह पानी भी झूठा नहीं होता, तो जिस पानी में शुद्ध .... बर्तन धोए गए हैं, उस शुद्ध एवं पवित्र जल को झूठा बताना.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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