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________________ द्वादश अध्याय . ARANA mornnnnnomnama भांति अवलोकन करके गमन करे । यो रात में साधु पेशाब आदि कार्य के अतिरिक्त मकान से बाहर गमनागमन क्रिया नहीं करते। उक्त . कार्य के लिए या निकट में ही व्याख्यान-उपदेश देने के लिए तथा जिस मकान में ठहरे हैं उस मकान में भी एक जगह से दूसरी जगह पानाजाना हो तो चलने के मार्ग का भली-भांति परमार्जन करके चले,जिस से रास्ते में आने वाले किसो भो जोव को घात न हो। मार्ग भी दो प्रकार का है-- द्रव्य और भाव । द्रव्य मार्ग भी दो तरह का है-- सुपथराजमार्ग और कुपय- उजड़ रास्ता । अत: साधु उजड़ मार्ग को त्याग - कर राजमार्ग पर चले । क्योंकि उजड़ मार्ग पर गति करने से स्व और पर जीवों की विराधना होने की संभावना रहती है। इस तरह भाव मार्ग भी दो प्रकार का है- सुमार्ग और कुमार्ग । साधु दुष्ट एवं अज्ञानी व्यक्तियों द्वारा आचरित कुमार्ग का परित्याग करके महापुरुषों एवं सर्वज्ञों द्वारा प्राचरित सुमार्ग पर गति करे । भाषा समिति जैसे चलने की क्रिया का जीवन के साथ गहरा संबंध है, उसी तरह भाषा भी जोवन व्यवहार के लिए आवश्यक है । अतः भाषा का प्रयोग करते समय भी विवेक एवं यतना न रखी जाए तो अनेक जीवों की हिंसा हो जाती है और उससे पाप कर्म का बन्ध होता है। प्रतः भाषा को संयमित करने के लिए भाषा समिति का उल्लेख किया गया। भाषा समिति भो चार प्रकार की है-- १-द्रव्य, २-क्षेत्र, ३-काल और ४-भाव । शब्दों के समूह को भाषा कहते हैं। शब्द पुद्गल-द्रव्य है । अतः द्रव्य का अर्थ हुआ कि भाषा वर्गणा के ऐसे पुद्गलों का उपयोग करना चाहिए जिससे किसी भी व्यक्ति या प्राणी के मन को.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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