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________________ प्रश्नों के उत्तर . साध का जीवन समिति-गप्ति यक्त होता है। समिति हिंसा महाव्रत को सुरक्षित रखने की साधना है। उसके पांच प्रकार हैं- १-ईर्या, २-... भाषा, ३-एषणा, ४-आदानभंडमत्त निक्षेपणा और उच्चार-पासवर्ण-खेलजल मैल परिठावणिया समिति । ... ईर्या समिति ..... ... ईर्या शब्द का अर्थ होता है गमना - गमन की क्रिया करना । योगों की एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को प्रवृत्ति को ईर्या कहते हैं । अतः विवेक पूर्वक गमन करने की क्रिया को ? ईर्या समिति कहते हैं । वह आलंबन, काल और मार्ग के भेद से तीन प्रकार की होती है । आलंबन का अर्थ है-आधार । ई-गमन-क्रिया.. पृथ्वी के आधार पर होती है और पृथ्वी पर अनेक जीव-जन्तुओं का .. निवास एवं हलन-चलन होता रहता है । अतः साधु को चलते समय अपने योगों को उसी क्रिया को ओर लगा देना चाहिए अर्थात् उसकी : दृष्टि अपने चलने के मार्ग के अतिरिक्त इधर-उधर नहीं होनी चाहिए। वह एकाग्र भाव से पथ का अवलोकन करते हुए चले, जिससे रास्ते में आने वाले छोटे-मोटे प्राणियों को बचा सके इसलिए साधु अपने मन, वचन और शरीर के योग को सब तरफ से हटा कर, केवल गमन को "क्रिया में या मार्ग का सम्यक् प्रकार से अवलोकन करने में लगाए। .. अतः चलते समय साधु को न मन से किसी भी विषय का- भले हो.. वह धार्मिक ही क्यों न हो चिन्तन-मनन करना चाहिए, न किसी भी तरह की बातें करना चाहिए-- यहां तक धार्मिक उपदेश तथा स्वा-.. ध्याय भी चलते समय नहीं करना चाहिए और अपनी दृष्टि को सीधी एवं चलने के मार्ग पर स्थिर रखना चाहिए। इधर-उधर, दाएं-बाएं . . - दृष्टि को घूमाते-फिराते नहीं चलना चाहिए। काल का तात्पर्य है समय, वह दो प्रकार का होता है-- दिन और रात । दिन में भली
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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