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________________ प्रश्नों के उत्तर ५२८ अपनी सामायिक में हिंसा प्रादि दोषों का मन, वचन और शरीर से सेवन करने, कराने और अनुमोदन करने का त्याग कर देता है, परन्तु श्रावक उक्त दोषों का मन, वचन और शरीर से सेवन करने और करवाने का ही त्याग करता है। . . . . ... .. प्रश्न- सामायिक करते समय किस प्रासन से बैठना उत्तर- साधना में प्रासन का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है। दृड़ प्रासन का मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। बैठने की चुस्ती एवं सुस्ती का मन पर असर पड़े बिना नहीं रहता। शिथिल आसन मन एवं विचारों को शिथिल बना देता है, जीवन में आलस्य एवं प्रमाद को बढ़ाता है। इसलिए सामायिक में सदा दृढ़ आसन से बैठना चाहिए । इसकी विशेष जानकारी के लिए प्राचीन योग शास्त्र आदि ग्रन्थों का अध्ययन अपेक्षित है। हमारे यहां सामायिक आदि धार्मिक क्रिया: करते समय बैठने के लिए कुछ आसनों का उल्लेख मिलता है। जैसे- १सिद्धासन २-पद्मासन, और ३-पर्यकासन ! :: :: .... ... ... ......१-सिद्धासन- बाएं पैर की एड़ी से जननेन्द्रिय और गुदा के बीच के स्थान को दबा कर, दाहिने पैर की एडी से जननेन्द्रिय के ऊपर के .. भाग को दबाना, ठुड्डी को हृदय में जमाना और शरीर को सीधा रखें कर दोनों भौहों के बीच में दृष्टि को केन्द्रित करना सिद्धासन - कहलाता है.। . .. . . . . . . . . . . . . . . २-पद्मासन- बांई जांघ पर दाहिने पैर को और दाहिनी.जांघ पर बांयें पैर को रखना और फिर दोनों हाथों को दोनों जंघाओं पर । चित्त रखना अथवा दोनों हाथों को नाभि के पास ध्यान मुद्रा में रखना। ३-पर्यकासन - दाहिना पैर बांई जांघ के नीचे और बाया पैर
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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